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नहीं रही मैं ईश्वर की फाॅलोवर

 अच्छा सुनो

बहुत हुआ ये सब

धर्म पूछकर मारा

नाम पूछकर मारा

कलमा पढ़वाकर मारा


या मारने से पहले कुछ भी नहीं पूछा


मगर मारा तो

या इससे भी मुकर सकता है कोई?


मुझे यह सब नहीं कहना

मेरा कंसर्न है कि 'वो' कहाँ है

कहाँ है 'वो'?

जब भी कुछ होता है

बैठ जाता है 'वो' दुबककर

किसी को नहीं बचा पाता!


अब मुझे भी नहीं बचाना है 'उसे'

अपने भीतर

कह देना जाकर

अगर कह सको,


"तुम्हारा एक फाॅलोवर कम हो गया है ईश्वर"


~अभिलाषा

११ मार्च

मुझे याद नहीं

कब जन्मी थी मैं

पा ने कहा मार्च की अट्ठारह को

माँ ने कहा इग्यारह रही होगी

नानी माँ ने बतलाया,

हम लोग बसौढ़ा की तैयारी में लगे थे तब

माने होली के आठों वाली सप्तमी को,


आसान नहीं था मेरा जन्म

माँ के गर्भ में बीतने को था

लगभग दस माह का समय

किसी भी सूरत में हो ही जानी थी जचगी

आम प्रसव से अधिक पीड़ा झेली थी माँ ने

कभी जताया नहीं

पर लाड़ करती है इतना ही

कोख से निकाल कर भी

लगाये रही छाती से

कई बार घुटन तक महसूस की मैंने


मुझे याद नहीं कुछ भी

यह भी नहीं कि पा के तबादलों संग

कितना अकेलापन झेला होगा माँ ने

यहीं से पा के पाँवों में

आ गया था राजनीति का चक्र

अपने विभाग के यूनियन लीडर्स से लेकर

इंदिरा जी तक से मिलना

उनका पसंदीदा शगल बन गया था

मैं थी कि बड़ी ही होती जा रही थी

कोई और रास्ता था ही कहाँ


फिर एक दिन,

यक़ीन मानो बहुत बड़ी हुई थी

पहली बार उस दिन,

पंडिज्जी ने कहा,

“जन्म राशि कुंभ के अनुसार ये ग्रह…”

माँ ने “इसकी जन्म राशि तो वृश्चिक है”

कहकर उनके मुँह पर जड़ना चाहा

'शट अप'

पर अब क्या

हो चुका था जो होना था

क्योंकि मुहर लगा दी थी नानी माँ ने

सत्य वर्सस संभावना के वार ज़ोन में

पछाड़ खाकर पस्त हो चुका था

सत्रह बरसों का सहेजा सच

जो एक झटके में सच नहीं रह गया था

मैं जन्म के अट्ठारहवें साल में

पूरे सात दिन और बड़ी हो गयी थी


मुझे और सीखना था

बहुत कुछ

मग़र मैं बनकर रह गयी पैसिव लर्नर

उन सात दिनों के क्षेपित सच के साथ


कैसा लगता है सुनने पर,

तुम वो तो हो ही नहीं जो अब तक होते आये हो

~अभिलाषा

वे ही मारे जायेंगे

 






देखना

एक दिन

तुम सब मारे जाओगे

हाँ तुम सब

मैं भी

लेकिन सबसे पहले

वे मारे जायेंगे

जिनका नाम शुरु होगा “र” से

मैं डरता हूँ

थर्राता हूँ

नींद नहीं आती है

तो रातों में उठ बैठता हूँ

मेरा किसी काम में

मन नहीं लगता

यहाँ वहाँ भागता रहता हूँ

कम हो गयी है मेरी प्रोडक्टिविटी

गुस्सा तो बहुत करने लग जाता हूँ

बैठ नहीं पाता एक जगह टिककर


और तुम्हें पता है

दो महीने पहले

उस नौकरी से निकाल दिया जाता हूँ

जहाँ मैंने दिये थे अपने 20 साल

और पिछले महीने

तीन और नौकरियों से

फारिग कर दिया जाता हूँ मैं

अब कोई काम नहीं

दिन भर खुद से ही उलझता हूँ

झल्लाता हूँ

सिर धुनता हूँ

अब मेरे पास बहुत वक्त है

कि बता सकूँ सभी को

घूम-घूम कर

चिल्ला-चिल्ला कर

कि मार दिए जायेंगे सब

कोई नहीं बचेगा

लेकिन सबसे पहले वे ही मारे जायेंगे

जिनका नाम “र” से शुरू होता है


जितना मानसिक व्यग्र दिख रहा हूँ मैं

मुझे देख कर हर कोई यही कहेगा

हाँ जरुर इसके साथ कुछ हुआ होगा

इस तरह मेरी बात

बातों ही बातों में

देर तक चलती रहेगी

दूर तक निकल जायेगी

और इसे मान लिया जायेगा सच


झूठ की चाशनी में लिपटा हुआ

आज का निर्लज्ज सच

कहीं खौफ़नाक मुस्तक़बिल न हो जाये


स्पांसर











जीवन की भूख कब रही मेरे भीतर

एक भूख से भरा जीवन रहा

इन कोमल उंगलियों पर पड़ी कठोर गाँठे

याद दिलाती रहीं ध्रुव तारे को छू लेने की ज़िद

न तो हम प्यार से बैठे कभी पास-पास

न ही पास बैठकर प्यार कर पाये

बस अपनी अपनी खिड़कियों से मापते रहे

रात का एकाकीपन


और


तब तक चलता रहेगा यह सिलसिला

जब तक चाँद करता रहेगा स्पांसर मेरे दर्द को