मेरे बदलने की उम्र बहुत लम्बी है

 मैं बदल गयी हूँ पहले से

हाँ मैं बदल गयी हूँ

खोटे सिक्के सी उछाले जाने पर

रोती नहीं हूँ

जश्न मनाती हूँ

फेंक दिये जाने की स्वतंत्रता का

घंटों छत ताकते हुए

छेद नहीं करती उसकी मजबूती में

यह नहीं सोचती

कि तुम मुझसे घृणा करते हो

हाँ अब बदल गयी हूँ

उन ग्रहों में नहीं उलझती

जो कमज़ोर हैं जन्मांक में

जुगाड़ चलाती हूँ

अच्छे ग्रहों की अनुकूलता का

इतनी बदली हूँ मैं

कि कोई भी खाये मेरी मौत का भात

मैं नहीं जानने आऊँगी उनके मन की बात 

लौट जाऊँगी यमघंटा से

फटते हैं तो फट जायें बादल

किसी पर भी दुखों के

तुरपाई नहीं करुँगी

मुग्ध नहीं रही अपने इच्छाशव पर

इतनी विरत हूँ कि मरी माछ की तरह

बहाव का आलिंगन नहीं करती

तलहटी को सौंप देती हूँ अपना संघर्ष

और हाँ…

मेरे बदलने की उम्र बहुत लम्बी है




1 टिप्पणी:

Onkar ने कहा…

सुंदर सृजन

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php