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मेरे एहसासों की कहानी






बहुत सी ऐसी बातें हैं जो अनकही रह जाती हैं उन्हें शब्द में ढालकर कविता पे पिरोकर लायी हूँ आपके लिए। उम्मीद है पसन्द आएंगी।
प्रतिक्रिया अवश्य करियेगा।

रिश्ता

मैं
प्यार में थी
या
प्यार के लिए थी,
रिश्ता बनाये रखने को
ये फर्क समझना
बहुत जरुरी है I

हमारे रिश्ते का सच

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क्या था
हमारे रिश्ते का सच
हम कहें
तो एक विश्वास
और तुम कहो
तो एक मज़बूरी,
कभी
हमारा आमंत्रण
तुम्हारी स्वीकृति
कभी तुम्हारा प्रणय
और हमारा समर्पण,
कभी जब
बहुत प्रेम के क्षणों में
याद करते हैं
उस पल को
जब तुमने
सहमति दी थी
तुम्हे चाहते रहने की,
जब तुमने
खंगालना चाहा था
मन के निक्षेपों को,
जब तुमने
पढ़नी चाही थी
शब्दों की आवृत्ति,
जब तुम्हारे
मन ने अनुभव की थी
हमारे भीतर की ऊष्मा,
जब तुम्हारी आँखों ने
बेध दिए थे
हमारे सारे रहस्य,
जब तुम समाते गए थे
हमारे अंतर तक
कहीं दूर,
जब हमने और तुमने
साथ-साथ जिए थे
कुछ पल……
तब लगता है
कुछ तो हुआ था
हमारे बीच
जिसका स्पंदन
आज तक है

माँ क्या कोई अभागी कभी डोली नही चढ़ती ?


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जब भी देखती हूँ अपने सूने पाँवों को
टीस सी उठती है मन में
मुझे भी अपने पाँवों में
महावर लगानी है,
सुननी है वो छम-छम
जो मेरे पाँव की पायलों से हो,
भले ही इन कलाईयों को
खानदानी कंगन न मिले
पर उस घर के बुजुर्गों का
आशीष तो मिले
जिस घर मेरी डोली जाएगी,
मेरा ब्याह कही दूर देश कर दे
मैं आते-जाते तुझसे मिलती रहूंगी,
माँ, मेरे लिए दूल्हा मत ढूँढना
जो सेहरे के पीछे छुपा
महज एक चेहरा हो,
मुझे तो जीवनसाथी चाहिए,
मेरा मन, मेरी देह
मेरा सर्वस्व उसका,
वो भी मुझे घर की लक्ष्मी माने,
उसकी राह तकूँगी
वो हर बार मेरे लिए
प्यार लेके लौटे,
उसके बच्चों को अच्छा इंसान बनाऊँगी,
वो मुझे मेरा मान दे,
जब भी उसकी आँखों में प्यार से देखूं
मुझे विश्वास दिखे,
जब भी उसके सीने में सर छुपाऊँ,
मैं हर दर्द और डर से मुक्त हो जाऊं,
माँ, लाएगी न मेरे लिए
मेरे मन का साथी,
मैं काजल, गजरा, बिंदी,
झुमके, चूड़ी, हार,
नथ, पायल, महावर में आ जाऊं,
उससे कह देना
बस चुटकी भर सिंदूर ले आये
और हाँ
दहेज़ में वो चाबुक
मेरे साथ विदा कर देना
जो बापू तुझपर चलाता है,
हाँ कह दे न माँ
कहीं ऐसा न हो
बापू फिर पीकर आ जाये,
आज फिर मेरा ये सपना बिखर जाये,
माँ क्या गरीब लोगों की कोई सीरत नहीं होती
क्या कोई अभागी कभी डोली नहीं चढ़ती ?

एक अजनबी की तरह

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सुनो न, आज कविता की भाषा में
मौन आंखों से बात करते हैं।
तुम मुझे सताते हो
मैं तुम्हें दुलारती हूँ रोज-रोज,
गीत मनुहार के छोड़ो,
एक अजनबी की तरह आज फिर
मुलाक़ात करते हैं।
किस हाल में हूँ मैं ये न पूछो मुझसे,
तुम्हारी भी मुझको कहाँ कुछ खबर है,
आओ तो पहली नज़र की तरह
मिलते हैं और जवां रात करते हैं।
मुझसे निगाहें मिलाकर के बोलो
हया के इशारे पलकों पे रखो,
होठों को फुरसत मिले दो घड़ी
कुछ इस तरह रात भर बात करते हैं।

मेरे कलमबद्ध एहसास।


मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php