To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
Wikipedia
मेरी प्यारी मेट्रो
इंसान बना दिया
हज़रतगंज को हल्दीघाटी का
मैदान बना दिया
गलियों से गुजरते हैं
तब अपने ये आलाकमान हमें
बिल्कुल औरंगज़ेब से लगते हैं
दिलकश तहज़ीब के शहर को
बेजान बना दिया।
हर रोज़ जाम का झाम देकर
खुद आकाश-पाताल की सैर करे
हमें वादे तमाम देकर
मगर ऐ महज़बीं, तूने झूठ बोलना
कुछ और आसान बना दिया।
सबको बहुत लगे खूबसूरत
लोग कहते हैं शहर को थी
एक तेरी बहुत जरूरत
ज़मीं की है तू, ज़मीं पे ही रहना
दिल को तेरा अरमान बना दिया।
दिल से इस्तक़बाल है तुम्हारा
हम तो तुमपे दिल हारे हैं
बोलो क्या ख़याल है तुम्हारा
अपने भाव ज़रा कम ही रखना
एंटीक नहीं तुमको साजो-सामान बना दिया।
कचरे से बोतल बीनते बच्चे!
कभी उन्हें टिकाते हैं जमीन से
बैट की तरह,
कभी उन खाली बोतलों में
हवा भरने की नाकाम कोशिश करते हैं,
सूखे फेफड़ों की फूँक से
निकलने वाला संगीत लुभाता है उन्हें;
उन्होंने देखे होते हैं सारे ब्रांड
पर उनकी प्यास बुझाने वाला
है न उनका सुपर ब्रांड
म्युनिसिपलिटी की डायरेक्ट सप्लाई;
क्योंकि ईश्वर ने भी उन्हें भेजा है
डायरेक्ट सप्लाई वाला टैबू बनाकर;
किसी बड़े रसूखदार के मार्फ़त नहीं भेजा
न ही कोई साधारण सा बच्चा बनाकर
वो तो निम्न सोच की
प्रजनन क्षमता का नमूना हैं:
उन्हें कोई गुरेज नहीं
शीत, ताप, बारिश और बर्फीली हवाओं से
उन्हें तो बस इकट्ठी करनी हैं
कचरे से बीनकर
डिब्बे के संग खाली बोतलें।
दरियादिली
माँ...माँ... कहता हुआ नन्हा मेहुल स्कूल से आते ही गले से लिपटते हुए माँ को दुलारने लगा पर माँ ने उसे झिड़की दे दी।
"देख नहीं रहा अभी मैं क्या कर रही। शारदा देख मेहुल आ गया है इसका बैग लेकर ऊपर जा, ड्रेस चेंज करा देना। कुछ खिला भी देना, अभी मुझे स्वामी जी के साथ थोड़ा सा वक़्त लगेगा।" नौकरानी को आदेश देते हुए मेहुल की माँ फिर से स्वामी जी की आवभगत में लग गयीं।
तब तक दरवाजे पर एक बच्चा भीख मांगते हुए आ गया, "दीदी रोटी दे दो। दो दिन से भूखे हैं।"
"जा भाग यहाँ से, कोई और दरवाजा देख।"
"दीदी कुछ खाने को दे दो, हमने दो दिन से कुछ नहीं खाया है।" बच्चा बहुत दयनीयता से स्वामी जी की ओर देखने लगा।
"भागेगा यहाँ से या बताऊँ?" इतना कहकर माँ ने दरवाजे बंद कर दिए और स्वामी जी के लिए कपड़े और दक्षिणा सम्हाल कर रखने लगीं।
"माँ, इसमें से कुछ पैसे दे दो न बेचारा बहुत भूखा है।" मेहुल के इतना कहते ही उसकी माँ और स्वामी जी एक साथ गुस्सा करने लगे।
"कहाँ चली गयी शारदा, इसे लेकर जा यहाँ से।" माँ चिल्लाते हुए बोली तभी स्वामी जी बात को काटते हुए बोले, "अच्छा अब मैं भी चलता हूँ।"
"अरे स्वामी जी अभी कहाँ, आपने भोजन तो किया ही नहीं।"
"अभी इच्छा नहीं, फिर कभी।"
"दीदी...दीदी...!" शारदा भागते हुए आयी।
"क्या हुआ शारदा?"
"दीदी, मेहुल बाबा कहाँ?"
"अभी तो यहीं था, कहाँ गया?"
माँ और शारदा सीढ़ियों से ऊपर की ओर भागे। चारों तरफ मेहुल के नाम की आवाजें गूँज रहीं थीं पर उसका कहीं पता नहीं। माँ का बुरा हाल था। शारदा उसके पीछे-पीछे दौड़ रही थी। दोनों गेट से बाहर आये। माँ देखकर अवाक रह गयी। अभी कुछ देर पहले जिस बच्चे को उसने डांटकर भगा दिया था, मेहुल उसे अपना बचा हुआ लंच खिला रहा था। स्वामी जी उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगे। माँ की आँखों में खुशी और पश्चाताप का मिला-जुला भाव था।
मेरी सोच भी बड़ी खानाबदोश सी हो गयी है
खानाबदोश सी हो गयी है,
कभी तुम पे ठहरती है।
भटकते-भटकते न जाने
कितनी गलियों से गुजरती है।
भूखे बच्चे की आँसुओ की सदा,
कभी बन जाती है
कोई मासूम सी अनाथ की दुआ
आज बन्द तिजोरी में रखे
कागज़ के टुकड़ों में सो गयी है।
किसी बेवा की हया
कभी कोठों की रंगीनियों में
खोई जफ़ा,
आज ऊँचे घरानों की
बेहया ज़ीनतों से लिपटकर रो गयी है
सोने-चांदी की खनक सा
इत्र-गुलाबों में छुपा है
एक मासूम महक सा
नापाक हवा इनसे मिलकर
हो पाक जो गयी है।
खानाबदोश सी हो गयी है,
हो कोई जवाब तो तसल्ली करा दो!
अपना दरवाजा बंद कर लिया
कि आरुषि को
तलवार दम्पत्ति ने नहीं मारा,
लगभग सभी ने राहत की सांस ली;
अगर ये राहत है तो किस बात की,
कि महफूज़ नहीं हैं अब
घरों में भी बेटियां,
कि पहले तो गुनाह
सूरत में हुआ करते थे
अब एलियन गुनाह करते हैं,
कि वक़्त हर ज़ख़्म
भर देता है
कि आरुषि हमारी अपनी तो नहीं,
कि यहाँ तो
हर रात सनसनीखेज होती है
हर गली का एक
किस्सा मशहूर है,
कि सोचने को बस एक
यही बात तो नहीं
एक नन्हीं सी जान
और उसपर सौ अफसाने हैं,
कि....
ये फेहरिस्त बहुत लंबी है
हजारहां सवाल हैं
और दर्द में सुलगती आँखे हैं:
अब वो नहीं आएगी कभी
इंसाफ की भीख मांगने,
मगर सवाल ये है कि
बेटी जब तक घर नहीं आती
घर राह तकता है
फिर उसे सुलाकर
वो खुद भी सो जाता है,
एक रात अचानक उसकी नींद खुलती है
वो बदहवास सा
ये सोचकर बेटी को हमेशा के लिए
सुला देता है
कि कोई और न ये कर दे??
कोई जवाब हो तो तसल्ली करा दो:
कि गुनहगार की सूरत बता दो,
जिस लम्हे इंसाफ हो वो वक़्त मिला दो,
इंसानियत के नाते अपनापन दिखा दो,
वारदात न हो जिसमें वो रात बना दो,
लाल न हो जो गली वो राह दिखा दो,
गर ये भी न सोचूँ, तो क्या मैं सोचूँ,
सोच में फर्क की ये दीवार गिरा दो।
एक और दीवाली की सुबह।
दीवाली की धमधमाती रात की अगली सुबह यूँ तो शांत होनी ही थी। ऐसे में ड्राइव करने का अलग ही आनन्द होता है। पर आज कुछ ज़्यादा ही मौन था चारों ओर। घरों के खिड़की, दरवाजे लॉक थे कि लोग छुट्टी मना रहे थे, इससे भी बड़ा एक कारण था मौनता का कि रोड किनारे हर जगह जानवर चित्त पड़े थे। ये वो प्रहरी हैं जो सुबह होते ही मुस्तैद हो जाते हैं पर आज चौकस नहीं थे क्योंकि जब हम तेज आवाज में पटाखे फोड़कर दीवाली की खुशियां मना रहे थे तब ये छुपने को जगह तलाश कर रहे थे।
हम अपनी खुशियां मनाने के लिए कभी-कभी किसी को दूर तक परेशानी में डाल देते हैं। इन जानवरों का क्या क़ुसूर था कि रात भर आराम की नींद नहीं सो पाए। दीवाली की खुशियां जरूर मनाइए पर अपने आस-पास जानवरों, बुजुर्गों और बच्चों का ख़याल करके। ऊंची-ऊंची बिल्डिंग की छोटी तंग गलियों में डेसिबल की धज्जी उड़ाते फोड़ू बम महज पैसों का बेजा प्रदर्शन है। बेहतर होगा कि आप अपनी सामग्री को एकत्रित कर एक पार्क में निकल जाइए और खूब मनाइए दीवाली का जश्न।
त्योहार मनाना ग़लत नहीं बस आपका तरीका सही हो।
मेरी पहली पुस्तक
http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php
-
स्वयं के अन्तस् रावण अटल घात लगाए स्वयं की हर पल मुझको दर्पण बन, जो मिला वही विजित है मेरा स्वर कल नयन में राम तो पग में शूल हैं हर शबरी के ...
-
•जन्म क्या है “ब्राँड न्यू एप का लाँच” •बचपन क्या है टिक टाक वीडियो •बुढ़ापा क्या है "पुराने एप का नया लोगो” •कर्म क्या हैं “ट्रैश” •मृ...