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Mere Ishq Ka Mausam


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हाँ, मैं कुरूप हूँ....

unattractive dorky girl with glasses and pimples
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नहीं हूँ
मैं औरों के जैसी;
बस अपने जैसी
थोड़ी सी अलग हूँ,
नहीं फर्क पड़ता
कि मैं किसी दिखूँ,
पर बहुत फर्क पड़ता है
कि कैसे महसूस करते हो मुझे,
मेरे अंदर बहुत सी
साँसें सुलगती हैं
आहत करता है
तुम सबका दर्द
मुझे अपने दर्द से ज़्यादा,
भींच लेना चाहती हूँ
तुम्हें अपने सीने में
एक बच्चे की तरह
जब तुम्हें मेरी जरूरत होती है,
नहीं ढूंढती मैं तुम्हारा हाथ
अपनी जरूरतों के वक़्त
पर मेरी हथेली उठ ही जाती है
तुम्हारे माथे की सिलवटों पर
छुपा लेना चाहती हूँ
तुम्हें
अपने अहसास की छांव में
क्या फर्क पड़ता
किसी के आंकलन का मुझ पर
उनके बोलने से पहले कहती हूँ,
हाँ, मैं कुरूप हूँ
पर जीवन्त हूँ।

We defeat death everyday....


और हम सब......????

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जाने कितने दिन का वीज़ा है
पासपोर्ट तो लाये थे साथ
घुसपैठिये तो नहीं ही थे
जो अवैध होते हैं
वो तो
सजा पाते है
तुरन्त आता है उनका वारंट
काल के गाल में समा जाते हैं
और हम सब
टहल रहे हैं
इस सल्तनत में
जाने कब वीज़ा खत्म होने का
आदेश मिले
और दूरन्त सफर पर निकलना हो
हे मुसाफिर
जन्म के आँकड़े पर मत जाओ
कर्म की पोटली की ओर देखो
क्योंकि
वीज़ा की अवधि
भभोग में समाहित रहती है।

क्या यही इंसाफ है?

"जज साहब, मैंने इस आदमी को मारा है। मुझे सजा दीजिये। प्लीज जज साहब...." कहते-कहते निर्मला की चीखें पूरे कोर्ट में गूंज गयीं थीं। हर कोई यही जानना चाहता था कि कटघरे में खड़ी ये औरत खुद के लिए सजा क्यों चाहती है जबकि इसका पति भी इसे निर्दोष कह रहा है। सारे सुबूत निर्मला के पक्ष में थे वो कहीं से भी अपने श्वसुर की हत्या जैसे जधन्य अपराध की दोषी नहीं दिख रही थी। जज साहब चाहकर भी फ़ैसला नहीं सुना पा रहे थे। निर्मला की घिग्गी के साथ ही सारा माहौल शांत था। हर आंख में ढेरों सवाल थे। वहीं एक ओर निर्मला का पति शांत खड़ा हुआ था।
जज साहब ने 2 घंटे के लिए कोर्ट को बर्खास्त कर दिया ताकि वो पूरा मामला समझ सकें।
थोड़ी ही देर में एक अर्दली ने निर्मला को जज साहब से मिलने का फरमान सुनाया। ये जज साहब की ज़िंदगी का पहला ऐसा केस था जिसमें गुनाह चीख़ रहा था कि निर्दोष को बरी किया जाए पर निर्दोष खुद को सलाखों के पीछे ले जाना चाहता था।
"निर्मला जी, देखिये मैं आपको व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता पर ये जानना चाहता हूँ कि आप खुद को दोषी क्यों मानती हैं? अगर बता सकने लायक हो तो मुझे बताइये शायद मैं कुछ मदद कर सकूँ?" निर्मला जज के सामने सर झुकाये खड़ी थी जज का सवाल सुनते ही फफक पड़ी।
"जज साहब, मैं इस आदमी के साथ नहीं रहना चाहती। मेरा इस दुनिया में कोई और नहीं है। रही बात छविनाथ की तो उसको मैं ज़िंदा छोड़ने वाली नहीं थी। मैं हंसिया से उसकी गर्दन उड़ा देती मगर वो छज्जे के किनारे आकर कूदकर मर गया। ये आदमी जिसे आप लोग मेरा पति कहते हो ये जहरीला नाग है। ब्याह के बाद से ही इसने अपनी पत्नी बाप को सौंप दी। खुद नशा पीकर धुत रहता, बाहर की औरतों के साथ अय्याशी करता। मैं इसके बाप की हवस का शिकार बनती। कुछ बोलती तो खाल उधेड़ देता।  ऐसी ही मौत मरना था इसे। जज साहब मुझे उम्र क़ैद की सजा दो। अगर आज़ाद हुई तो...." निर्मला जज साहब के पैरों में लिपट गयी।
निर्मला को एक ओर लगभग धकेलते हुए खिड़की तक चले गए। शून्य में इस कदर खो गए कि ज़िन्दगी निर्वात लगी उस पल।
उन्हें तो फैसला गवाहों और सुबूतों के आधार पर करना था। अदालत मानवीय संवेदना को नहीं मानती न ही इन पर आधारित निर्णय लेती है।

मेरी पहली पुस्तक

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