नेह के बंधन हृदय में, संग सजनी पथ खड़ी
मुझको तो ऐसा लगे, बस यही विदा की घड़ी
माँग पर टीका तुम्हारे, रात तारों से सजी
कह दो के तुमको भी, थी प्रतीक्षा मेरी
नभ झुका है सामने, हमको ये आशीष देने
मेरे लिए प्रमाण हो तुम हर साक्ष्य से बड़ी
नेह है, अर्पण है अब, तुमको है मेरा समर्पण
दुःख तुम्हारे सब मेरे, प्रेम का तर्पण इसी क्षण
योद्धा हूँ मैं तुम्हारा, तुम मेरी हो सारथी
ये अमिट सिंदूर रेखा माँग पर जब है चढ़ी
इंद्रियां कब वश किसी के, तुम बनी छठ इंद्रिय
काशी, काबा, गंगासागर, मेरे सब तीरथ यही
सात अजूबे दुनिया में, तुम हो मेरी आठवीं
अर्धांगिनी हो तुम मेरी, मैं तुम्हारा हूँ ऋणी
श्रीमान सुधांशु अंकल और श्रीमती सुधा आंटी की प्रेममय वैवाहिक वर्षगाँठ के सुअवसर पर!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-07-2020) को "चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे" (चर्चा अंक-3749) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत ढेर सारा आभार मान्यवर 🙏
हटाएंबहुत प्यारी रचना , चित्र ने अलग ही समा बाँध दिया
जवाब देंहटाएंश्रीमान सुधांशु अंकल और श्रीमती सुधा आंटी जी को उनकी प्रेममय वैवाहिक वर्षगाँठ के सुअवसर पर हम सब की तरफ से ढेरों शुभकामनाएं
और वो यूँ ही प्रेणास्रोत्र बने रहें
सादर नमस्कार
बहुत आभार आपका ❤️
हटाएंभावपूर्ण सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं आ0
बहुत आभार!
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंप्रेम से सराबोर बेहतरीन अभिव्यक्ति आदरणीय दी .
जवाब देंहटाएंश्रीमान सुधांशु अंकल और श्रीमती सुधा आंटी की प्रेममय वैवाहिक वर्षगाँठ के सुअवसर पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.
बहुत-बहुत आभार आपका 🙏
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार आपका
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