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शहादत!


'चांद आज साठ बरस का हो गया' इतना कहकर पापा ने ईंट की दीवार पर पीठ टिकाते हुए मेरी आंखों में कुछ पढ़ने की कोशिश की...
'लेकिन मेरा चांद तो अभी एक साल का भी नहीं हुआ है' कहते हुए मैं पापा से लिपट गई.
मेरी आंखों से रिस रहे आंसू बीते समय को जी रहे हैं. रोज शाम हम घर की छत पर होते हैं तीन महीने से हर रोज पापा छत पर एक तारे को अपने बेटे का नाम देते हैं और मैं अपनी मां का.
तिरंगे से लिपट कर एक लाश अाई थी और जाते वक़्त दो अर्थी उठी थीं. जिसे शहादत कहते हो आप सब वो वीरानी बनकर चीखती है. थर्राती है सन्नाटों में.

15 टिप्‍पणियां:

  1. जय हिन्द जय हिन्द की सेना

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  2. जय हिन्द ! मार्मिक रचना ! दिल को छू गयी ! --ब्रजेन्द्र नाथ

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  3. मार्मिक ... स्तबद्ध हूँ पढने के बाद ...
    नमन है मेरा ...

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  4. हृदयस्पर्शी पंक्तियां पढ़कर मन व्यथित हो उठा। भावपूर्ण प्रस्तुति ।

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