कि बढ़ चले पुकार पर
त्रिशूल रख ललार पर
जो मृत्यु भी हो राह में
कर वरण तू कर वरण
हो पार्थ सबकी मुक्ति में
रख हौसले को शक्ति में
जो शत्रु को पछाड़ दें
वो तेरे चरण, तेरे चरण
जब तेरे आगे सर झुकें
हाथ कभी रिक्त मिलें
बाधाओं से टकरा के
बन करण तू बन करण
पछाड़ दे तू हर दहाड़
ऐसी हो तेरी हुँकार
चीर किसी द्रोपदी का
ना हो हरण, ना हो हरण
न हो जटिलता का अंत
बस मौन रहे दिग-दिगन्त
हो पथ का भार तेरे सर
प्रभु शरण ले प्रभु शरण
बहुत सुन्दर और उपयोगी सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका!
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार मान्यवर!
हटाएं