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तुम शशि हो शरद के

 


व्रत हुआ कोजागिरी का

और देवों के प्रणय का हार

महारास की बेला अप्रतिम

मैं अपने मन के शशि द्वार

तुम शरद हो ऋतुओं में

तुम हो मन के मेघ मल्हार

चंद्रमा कह दूँ तुम्हें तो

और भी छाए निखार

तुम स्नेह की कण-कण सुधा हो

मद भरी वासन्ती बयार

पीत जब नाचा धरा पर

हुआ समय बन दर्शन तैयार

मेरी पहली पुस्तक

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