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हममें हमको बस...'तुम' दे दो



कुछ उलझा-उलझा सा रहने दो
कुछ मन की हमको कहने दो
आँखों से बोल सको बोलो
कुछ सहमा-सहमा सा चलने दो
हर बात गुलाबी रातों की
हया के पहरे बैठी है
है रात अजब शर्मीली ये
हमको-तुमको यूँ निहार उठी
अब हाथ कलेजे पर रखकर
कुछ हल्का-हल्का सहने दो;
तुम हो, हम हैं सारा आलम
मदमाता यौवन, भीगे हम-तुम
आ जाओ छुपा लो हमको
मन सावन है, तन वृंदावन
मत रोको हम प्रेमाकुल हैं
बस मद्धम-मद्धम सा झरने दो;
एक ऐसी हिलोर उठी हिय में
आह की हूक जगी औ बढ़ी
तोड़ो भी हर सकुचाहट को
देखें तो जरा मसली सी कली
हममें हमको बस 'तुम' दे दो
उफ़्फ़ बिखरा-बिखरा सा रहने दो.

आओ न प्रेम को अमर कर दो

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तुम्हारे लिए कोई कसम न हो
फिर भी पूरा जनम है
सात फेरे न सही
हम तेरे तो हैं,
सुहाग का चूड़ा, बिछुआ, महावर
आरती का थाल
सब कुछ सजाया है
अब मान भी जाओ हमारी मनुहार
आज चंदा को अपनी नथ बनाना है
चाँदनी की पालकी में
प्रेम डगरिया जाना है,
पीपल की ओट से
स्नेह का दिया मत दिखाना
छत पर चाँद उतरने का भ्रम मत बनाना,
हमें तो दूर आसमानों में फैली
वो लाली चाहिए,
पूरा चाँद तो तुम ही हो मेरे;
कभी मन में पसर जाती है
उम्मीदों की अमावस
तब तुम्हीं तो हो न जब आँखें झुकाकर
स्वीकारोक्ति देते हो
अपने होने की, हमारे साथ हर पल,
हम नेह के सूत पर
आँखें मूँदकर चल पड़ते हैं,
तुम्हारा होना हमारे मन का उजाला जो है,
तुम हो तो हम हैं
अब आओ भी
मन कितना प्रेम-पिपासु हो रहा,
शब्दों के छज्जे पर
इसकी वय न ढ़लाओ,
श्री-गणेश कर दो कि
मन से मन का एकाकार तो हो गया
देह को हमारे नाम से मुक्त कर दो
हमें पतिता बना दो,
समा लो हमें खुद में
समर्पण का गठबंधन करा दो,
सोंख लो बून्द-बून्द हमारे कौमार्य की
हमें ईश की ब्याहता बना दो
बहुत हो गया बातों का परिणय
अब तो हमें अमरपान करा दो!

मेरी पहली पुस्तक

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