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आओ न प्रेम को अमर कर दो

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तुम्हारे लिए कोई कसम न हो
फिर भी पूरा जनम है
सात फेरे न सही
हम तेरे तो हैं,
सुहाग का चूड़ा, बिछुआ, महावर
आरती का थाल
सब कुछ सजाया है
अब मान भी जाओ हमारी मनुहार
आज चंदा को अपनी नथ बनाना है
चाँदनी की पालकी में
प्रेम डगरिया जाना है,
पीपल की ओट से
स्नेह का दिया मत दिखाना
छत पर चाँद उतरने का भ्रम मत बनाना,
हमें तो दूर आसमानों में फैली
वो लाली चाहिए,
पूरा चाँद तो तुम ही हो मेरे;
कभी मन में पसर जाती है
उम्मीदों की अमावस
तब तुम्हीं तो हो न जब आँखें झुकाकर
स्वीकारोक्ति देते हो
अपने होने की, हमारे साथ हर पल,
हम नेह के सूत पर
आँखें मूँदकर चल पड़ते हैं,
तुम्हारा होना हमारे मन का उजाला जो है,
तुम हो तो हम हैं
अब आओ भी
मन कितना प्रेम-पिपासु हो रहा,
शब्दों के छज्जे पर
इसकी वय न ढ़लाओ,
श्री-गणेश कर दो कि
मन से मन का एकाकार तो हो गया
देह को हमारे नाम से मुक्त कर दो
हमें पतिता बना दो,
समा लो हमें खुद में
समर्पण का गठबंधन करा दो,
सोंख लो बून्द-बून्द हमारे कौमार्य की
हमें ईश की ब्याहता बना दो
बहुत हो गया बातों का परिणय
अब तो हमें अमरपान करा दो!

तुम्हारी उष्णता को घूँट-घूँट पियेंगे!


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हमारे मन के अधूरेपन को
आकार देती तुम्हारी पूर्णता
और तुम्हारे न होने पर
पल-पल पिघलती हमारी लघुता,
इसको साकार करना है हमें
नीलगगन का मिलन बनकर।
तुम्हें चाँद क्या कहें
तुम तो आसमान हो हमारे,
तुम्हारे फैलाये हुए डैने ही तो
हमारी छाँव हैं;
सुनो आज की रात थाल में
हमारे स्नेह का
हल्दी और अक्षत होगा,
छलनी से चमक रही हमारे चाँद की आभा
श्रंगार के यौवन को और बढ़ाएगी,
तुम रूप, रस, माधुर्य भरा घूँट पिलाओगे,
हमें प्रेम की गलियों में
दामन थामकर टहलाओगे,
तुम्हारे लिए गणेश चतुर्थी नहीं
हम तो हर वार व्रत रहेंगे,
आज की रात हम प्रेम का मधुमास जियेंगे,
तुम्हें पल-पल दिल में उतारेंगे,
तुम्हारी ऊष्णता का घूँट-घूँट पियेंगे,
अहसास की चादर तले
सुखन की धीमी आंच पर,
तुम्हारे नेह की हांडी में
जीवन का लाजवाब दाल-भात चखेंगे।

मेरी पहली पुस्तक

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