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हिंदी को प्रेम से अपनाएं


हम हिंदी से शर्म लिहाज करें
ये पिछड़े होने की निशानी है
क्यों कहें स्वयं को अक्षम हम
खुद से ही भेद-भाव बेमानी हैं
नहीं गुलाम हैं दूजी भाषा के
हर बच्चे में अलख जगानी है
प्रधानमंत्री जी की शुभकामना
अब जन-जन तक पहुंचानी है
इस देश के वैश्विक उत्थान को
हम सब को हिंदी अपनानी है।

हिंदी से है हिन्दोस्तान!

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हम सब के माथे की शान
हिंदी से है अपना हिन्दोस्तान,
कश्मीर से कन्याकुमारी और
पोरबन्दर से सिलचर तक
हिंदी ने कभी कोई
सरहद या दीवार नहीं बनाई,
सबने वही जुबां बोली
जो समझ में आई;
फिर भी ये उपेक्षा की
दहलीज़ पे ही रहती है:
स्वर-व्यंजनों का स्नेहिल संयोजन
पहले अपनों को ही समझना होगा,
फिर हिंदी की मशाल से रोशन
समूचे विश्व को करना होगा।
ओंकार से आज सब बिस्मिल्लाह कीजिये
कोटि-कोटि इन शब्दों का नमन कीजिये।

मेरी पहली पुस्तक

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