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बेड नंबर एट...और तुम


...अक्षत पिछले दो दिन से आई सी यू के आठ नम्बर  बेड पर मरणासन्न पड़ी तृषा की देखभाल कर रहा था...माँ के बाद अक्षत के अलावा था ही कौन उसका...डॉक्टर्स का मानना था उसके रहते तृषा के शरीर में नामालूम सी ही सही पर हरकत होती है...
"बेड नम्बर एट..." अक्षत सिस्टर की बात पूरी होने से पहले ही आई सी यू के कपड़े पहनता हुआ अंदर की ओर भागा...दिल-जान से चाहता था वो किसी तरह तृषा को बचा सके...हर बार की तरह उसकी हथेलियों की छुअन भर से ही उन बेजान हाथों में हल्की सी सुगबुगाहट हुई...अक्षत का कलेजा मुँह में आ गया...ज़र्द सा पड़ा तृषा का नीचे का होंठ थरथराया...
"...बोलो न तृषा...एक बार 'अक्ष' कहो न... देखो मैं तुम्हारे पास आ गया...बस एक बार बोलो..." डॉक्टर का हाथ कंधे पर महसूस होते ही वह फफककर रो पड़ा...
"देखिए आज पूरे 21 दिन के बाद जो हरकत इनके अंदर हुई है...हम इससे ज़्यादा एक्सपेक्ट भी नहीं कर सकते... इट्स टोटली मिरेकल...अब हम इनके जल्द ठीक होने की उम्मीद कर सकते हैं..."
"देखिए इनकी फैमिली से मैंने बार-बार ये जानने की कोशिश की कि इनके इस अवस्था में आने के पहले आखिर ऐसा क्या हुआ था...बट दे टोल्ड नथिंग..."
"मे हिप्नोथेरेपी आर अदर थिंग्स डू समथिंग फ़ॉर बेटरमेंट?"
"इट्स नॉट अ गुड टाइम फ़ॉर दीज...ये शॉक दो तरह से होता है पहला तो ये जब ऑल ऑफ सडेन कुछ ऐसा अनएक्सपेक्टेड सुना या दूसरा तब जब कॉन्टिनुअसली किसी से ये बोला जाता रहे...यू आर यूज़लेस, यू आर गुड फ़ॉर नथिंग, नोबडी लव्स यू...एन्ड समबडी को-रिलेट दिस विद एन इंसिडेंट...तो ये बातें अनकॉन्शस माइंड में एक ट्रुथ की तरह एक्सेप्ट कर ली जाती हैं फिर अपने आपको कितना भी कन्विन्स करना चाहे मुश्किल होता है...नेगेटिव बिलीफ सिस्टम और सेल्फ डाउट, डिप्रेशन एंगजाईटी जैसे साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर डेवलप करते हैं और यह सब कुछ लम्बे समय तक चलता रहे तो रोजमर्रा की छोटी-छोटी बातें भी वो अपनी नाकामी से को-रिलेट करने लगता है...ऐसे में पेशेंट सब्कांशस अवस्था में आ सकता है और हिप्नोथेरेपी से कैसे, किस हद तक लाभ मिलेगा ये कन्फर्म करने के लिए डॉ लूसिया को बुलाया है..."
"थैंक यू सो मच डॉक्टर..." क्या मैं ही इसके पीछे जिम्मेदार हूँ... मैंने तो उसकी हर बात सुनी फिर वो मुझे गलत क्यों समझती थी...उस दिन मैंने फोन पर बस इतना ही तो कहा था कि हर वक़्त खाली नहीं रहता हूँ तुम्हारे जैसे...उफ़्फ़ देखो तृषा मैं सब कुछ छोड़कर तुम्हारे लिए ही हूँ यहाँ डॉक्टर के जाते ही अक्षत का मन भारी हो गया वह तृषा की ओर मुड़ा... हड़बड़ी में ऑक्सीजन का पाइप पैर से उलझकर निकल गया...
तृषा का सर्द चेहरा अक्षत की बाहों में था...वो सचमुच जीत गई थी...आज वो सिर्फ उसके लिए वहाँ था...तृषा की एक ही ख्वाहिश थी कि वो ज़िंदगी की आख़िरी साँस अक्षत को महसूस करते हुए ले.
"डॉक्टर तृषा को होश आ गया, वो मुझे देख रही है..." अक्षत पागलों की तरह चीख रहा था और नर्स उसे हिलाकर बताने की कोशिश कर रही थी...
तृषा ज़िंदगी से हार चुकी थी और अक्षत अपने आपसे...

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php