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तुम एक प्रयोज्य हो स्त्री


 नहीं है मुझे तुमसे रत्ती भर भी सहानुभूति

तुम एक प्रयोज्य हो स्त्री

खोखली वायु के आकाश में विचरने वाली

क्या उदाहरण बनोगी किसी के समक्ष?

नहीं निकाल पायी थी तलवार

अपने म्यान से औचक

तो नोंच लेती उसकी खाल

दाँत और नाखून भी तो हथियार ही हैं

कुछ नहीं तो घृणा से थूक ही देती

उस भेड़िये की आँखों में

तुम्हारे रुदन की पीड़ा कुछ तो कम होती

अपमान का घूँट तो न गटकना पड़ता

छाती और पेट पर मार तो न लगती

तुम्हें पता है तुम्हारे बहाने से

यह पुरुष समाज एक बार फिर करेगा अट्टहास

और मनायेगा स्त्री की कमजोरी

इन्हीं में से कुछ पुरुष आयेंगे आगे

और जबरन रख लेंगे तुम्हारा सिर

अपने कंधे पर

उनकी सहानुभूति में मिश्रित रहेगा

पुरुष के वर्चस्व का महिमामंडन

‘स्त्री दुर्बल है और दुर्बल ही रहेगी’

तुम्हारे दरवाजे पर पसरी भीड़ का स्लोगन

भले ही उच्च स्वर में न हो

पर परिस्थितियों में प्रमाणबद्ध रहेगा

मार खाकर डंके की चोट पर दण्ड दो

अथवा क्षमा

स्त्री ही रहोगी

संभवतः इसीलिए नियति ने तुम्हारे वास्ते

बस एक दिवस बनाया है


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मैं जीवन हूं


मैं सब कहीं हूँ
प्रेम में, विरह में
दर्द में, साज में
सादगी में हूँ
परिहास में भी हूँ
मूक गर शब्दों से
तो आभास में हूँ
मैं मधुर हूँ
नीम की छड़ में
मैं कटु हूँ
शहद के शहर में,
अणु हूँ
रासायनिक समीकरण में
गति हूँ
चाल हूँ
समय हूँ
भौतिक के हर नियम में,
मुझसे ही आगे बढ़ा है
डार्विन का हर वाद
अपना सा लगे
प्रजातन्त्र और स्वराज
माल्थस का सिद्धांत हो
या रोटी का भूगोल
रामानुजम ने बताया
न समझो हर जीरो गोल
मैं शेषनाग पर टिकी,
मोक्ष के मुख पर
कयाधु के गर्भ से निकली,
जड़ हूँ
चेतन हूँ
अजरता
अमरता 
का पोषण हूँ
मैं जीवन हूँ।


बराबरी का समीकरण

हर वर्ष
'महिला दिवस'
मनाया जाता है
कहीं ये सोचकर
पुरुष अपनी कॉलर
ऊंची तो नहीं करते
कि साल के 364 दिन
तो उनके ही हैं,
आगे से एक दिन
'पुरुष दिवस'
भी होना चाहिए
ताकि
बराबरी का समीकरण
बना रहे।

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php