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शेर मोहब्बत के नाम

तलाश-ए-जहाँ में होते तो मिल गया होता
ये शब्द मुक़म्मल ही है जो हमें मार गया।

तौफ़ीक़ समझकर मोहब्बत को जी लिया हमने,
बस आंखों के इशारे हैं, कोई कलमा नहीं पढ़ना।

*तौफ़ीक़-इबादत

दो शेर

उनके तन्हा होने का उन्हें सबब क्या पता
रिश्ते तो मर गए मगर दफनाए नहीं गए

दिल की बंजर जमीं थी पर मोहब्बतों के फूल खिल तो गए,
अहसास की नमी हवा हो गयी, वहाँ कैक्टस के गुलिस्तां मिले।

उदासी के नाम चन्द शेर

आज मुझे कोई गुज़रा जमाना नहीं याद,
गुज़र जाए मेरा आज बस यही फरियाद

हद से गुज़र जाए गर दर्द, तसल्ली कहाँ
सायबां न कोई, दर्द ही बन गयी है दुआ

उदासी से भर जाती है उसके पाजेब की रुनझुन,
गर देखा कोई शहीद-ए-वतन तोपों की सलामी पे।

सर्द रातें हैं, चाँद की आँखों में नमी है
तेरे याद की शाम ढल चुकी है कहीं।

अख़बार श्वेत-श्याम की नुमाइंदगी भर है
खूनी हर खबर है पन्नों के बीच लिपटी।

Teen sher

बड़ी बेतरतीब सी है ये किताब ज़िन्दगी की
चलो हर एक पन्ने से सिलवटें हटा दी जाएं।

सोते हैं तो आँखों में मख़मली ख्वाब लेकर,
हर सुबह की नवाज़िश है काँटों का गुलाब

काश कि तुम भी पलटते इक बार मेरी जानिब,
इक शबीह* के दीदार में यूँ मैं शज़र* तो न होता

शबीह-तस्वीर
शज़र-वृक्ष

ख़ुदा हाफ़िज़

GOOGLE IMAGE

ज़िन्दगी चाहती है एक बदलाव मुक़म्मल
गर खो जायें तो अब इंतज़ार मत करना।



रेत के घरौंदों सी ढह गयीं ख्वाहिशों की इमारतें
दर्द मुक़द्दस तू कहीं खुद में समा ले मुझको।



तू गया औ जीने का सामान भी ले गया
रुक ये कलम ये सियाही तो मुझे दे दे।

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php