अँधेरे जब हँसते हैं
तो बहुत ज़ोर ज़ोर से हँसते हैं
बिल्कुल तुम से
मैं उस हँसी को महसूसने के लिए
पूरा दिन एक पैर पर चलकर
चलते-चलते निकाल देती हूँ
फिर भी उजालों से
कोई शिकायत नहीं करती कभी
और तुम आते भी हो तो
मौन के रेशमी सूत में लिपटकर...
एक हठ से धुला रहता है तुम्हारा चेहरा.
तुम्हारा मौन टूटना कहीं मुश्किल है
आकाश में विश्वास का तारा टूटने से.