जीवन की भूख कब रही मेरे भीतर
एक भूख से भरा जीवन रहा
इन कोमल उंगलियों पर पड़ी कठोर गाँठे
याद दिलाती रहीं ध्रुव तारे को छू लेने की ज़िद
न तो हम प्यार से बैठे कभी पास-पास
न ही पास बैठकर प्यार कर पाये
बस अपनी अपनी खिड़कियों से मापते रहे
रात का एकाकीपन
और
तब तक चलता रहेगा यह सिलसिला
जब तक चाँद करता रहेगा स्पांसर मेरे दर्द को