मेरी माँ
अब भी
खोजती है
एक ऐसा घर
जिसमे
तुलसी वाला आँगन हो
हौले-हौले धूप उतरती हो
जिसकी चौखटों पर
और उसे रोकता हुआ
एक नीम का पेड़
जिस पर
दिन भर रहती हो
चिड़ियों की चहचहाहट
क्योकि
बंद कमरों की घुटन
उसे नीरस लगती है
तंग गलियां
उसे डराती हैं
आज मैं
कैसे दूँ उसे
वो शुद्ध आक्सीजन
जो मुझे
मेरे बचपन में
मिली थी
कभी-कभी लगता है
कि हम
वैज्ञानिक युग में
आ गए
पर क्या
हमारी ज़िन्दगी
संसाधनों को
जुटाने में ही
सिमट जायेगी
क्या दे पायेंगे
हम अपने बच्चों को
बारूद के ढेर पर
गोल-गोल घूमती पृथ्वी
झूठ का तिलिस्म
पर्यावरण में
जहर घोलता
भयावह प्रदूषण
क्या यही तरक्की है?