मुझे भी तुमसे कुछ ऐसा सुनना है
जैसे मार्केज़ ने कहा था मर्सिडीज़ से
और मैं ख़ुद को उसके बाद
झोंकना चाहूँगी
इंतज़ार की भट्टी में
वह इंतज़ार
जो क़िस्मत से पूरा हो
वह इंतज़ार
जिसकी क़ीमत
कई एक साल हो
तुम लिखो इस दरमियाने में
‘नाइट्स आफ सॉलिट्यूड’
बंद रखो ख़ुद को
कहीं दूर सबसे अलग
और मैं कर दूँ एक जमीन-आसमान
पता हो हम दोनों को
आख़िर में आना ही है एक साथ
तुम कहो तुम चाहते हो मुझसे शादी करना
और मैं पूछ बैठूँ, क्यों
फिर तुम कहो कि तुमने पढ़ ली हैं
मेरी सारी कविताएँ
और फिर मैं लिखने लग जाऊँ
कविताएँ
बस तुम्हारे लिए
सृष्टि की सबसे सुंदर कविताएँ
कितना अधूरा होता होगा वो
जो नहीं लिख पाया होगा
विरह की पीड़ा
कितना अभागा होगा वो भी
जो नहीं जी सका होगा वह चुंबन
जो प्रेमिका के होठों की सूखी पपड़ी से
आ गया होगा छिलकर
प्रेमी के होठों पर
मैं नहीं घबराऊँगी
उन क्रन्दनों से
उस पीर से
रच लूँगी तुम्हारे नाम का एकांत
अपने आसपास
तुम लिख सको प्रेम
अपनी कविताओं में मेरे नाम का
…और फिर
हम कभी नहीं मिल पायेंगे
जैसे नहीं मिल पाये थे
सोनी और महिवाल
जैसे नहीं मिल पाये थे
हीर और रांझा
और फिर हमें
कभी जुदा ना कर सकेगा कोई
जैसे जुदा नही हुए थे मार्केज और मर्सिडीज़
लेकिन उसके लिए तुम्हें
कर जाना होगा मुझे अमर
मेरे लिए लिखी अपनी कविताओं में