हर साल नया साल




समय बदल रहा है

पल बदल रहा है

कल के लिए

आज और कल बदल रहा है

हर साल का यह शगल रहा है


पत्ता टहनी से बिछड़ा

धरती पात से

चकोर चाँद से बिछड़ा

चातक स्वात(इ) से

जीवन से बड़ा जंगल रहा है


कलछी भात से बिछड़ी

भात स्वाद से

मन रिश्तों से बिछड़ा

रिश्ता विवाद से

इन सबसे बड़ा दलदल रहा है


रौनक सभ्यता से बिछड़ी

प्रगति संयम से

एकता पीढ़ी से बिछड़ी

पीढ़ी पराक्रम से 

ना किमख़ाब ना बड़ा मलमल रहा है

 


4 टिप्‍पणियां:

Digvijay Agrawal ने कहा…

पत्ता टहनी से बिछड़ा
धरती पात से
सादर शुभकामनाएँ
सुंदर रचना

रोली अभिलाषा ने कहा…

आभार महोदय. आपको भी शुभकामनाएँ! 🙏

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 05 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

रोली अभिलाषा ने कहा…

बहुत आभार मान्यवर! 🙏

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php