हर साल नया साल




समय बदल रहा है

पल बदल रहा है

कल के लिए

आज और कल बदल रहा है

हर साल का यह शगल रहा है


पत्ता टहनी से बिछड़ा

धरती पात से

चकोर चाँद से बिछड़ा

चातक स्वात(इ) से

जीवन से बड़ा जंगल रहा है


कलछी भात से बिछड़ी

भात स्वाद से

मन रिश्तों से बिछड़ा

रिश्ता विवाद से

इन सबसे बड़ा दलदल रहा है


रौनक सभ्यता से बिछड़ी

प्रगति संयम से

एकता पीढ़ी से बिछड़ी

पीढ़ी पराक्रम से 

ना किमख़ाब ना बड़ा मलमल रहा है

 


6 टिप्‍पणियां:

Digvijay Agrawal ने कहा…

पत्ता टहनी से बिछड़ा
धरती पात से
सादर शुभकामनाएँ
सुंदर रचना

रोली अभिलाषा ने कहा…

आभार महोदय. आपको भी शुभकामनाएँ! 🙏

रोली अभिलाषा ने कहा…

बहुत आभार मान्यवर! 🙏

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर | नव वर्ष शुभ हो |

Anita ने कहा…

क्योंकि चलते जाना ही जीवन का लक्ष्य है

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

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