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तुम रोशनी मशाल की

तुम तेज़ हो
तुम ओज हो
तुम रोशनी मशाल की
देखकर तुम्हें, ज़िन्दगी
जी उठी शमशान की
स्वप्न एक कच्ची उमर का
उतावला जो कर गया
भाल पर बांधे कफ़न
वो उतर फ़िर रण गया
रात चांदनी, सुबह
वस्त्र बदल अा गई
डूबकर ओज में
तेज में नहा गई.

श्री अमिताभ बच्चन जी को दादा साहब फाल्के पुरस्कार की बहुत बहुत बधाई 🙏

पाकीज़गी इश्क़ की



पुरकशिश, दिलकश सी है तुम्हारी छुअन
कैसे रहते भला इश्क़ में नापाक हम
वो इरादतन था तुम्हारा
हमें बाहों में समा लेना
हम ज़र्रा-ज़र्रा तुम्हारे
हर इरादे पे मर गए
जब भी देखी तुम्हारी नज़र हमपे
हम खुद में ही सिहर गए,
कैसे छोड़ोगे इस रात में
इस आँचल की सरगोशी,
फेंक दो न ये हया का क़तरा
चूमने दो अपनी पेशानी,
फैला दो अपनी आँखों का पहरा
हो जाने दो हमें खुद से दर-ब-दर
आओ न कि वक़्त की टहनी से लिपटकर
दो बातें कर लें
खून तो बहता है हर रोज रगों में
आज ये साँसें भर लें
बड़ी किस्मत से मिले हैं ये लम्हे
इन्हें जाया न करो
पास बुलाने की कभी हमको
वजह तो बताया न करो,
दिल में उठ रही तुमको हर भँवर की कसम
इश्क़ के मौसम की हर लहर की कसम
सीने की धड़कनों पे अपने कान तो रख
मचल रहे अपने भीतर के इशारे को समझ
आज ले लेने दो हमको वो सोंधी सी महक
आज की रात करने दो सिसकियों में गुजर
यूँ ही आँखों-आँखों में हो जाने दो सहर
तुमको हमारे भीतर की कस्तूरी की कसम
हर आहट पर इश्क़ की मंजूरी है सनम
ज़र्द हुआ चेहरा, सर्द पाँवों पे करम कर दो
इन आँखों पे इक नज़र की रहम कर दो
बन जाने दो हमें इश्क़ के मजमून का
गुलाबी वो सफर,
जहाँ मोहब्बत को लग जाती है
महबूब की नज़र!

फिदा हैं जिस पर हम शाम-ओ-सहर..वो अदा हो तुम

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हम
इतना आसां न था
ये सफ़र तय करना
तेरे बग़ैर ये जीवन 
और उसपर गुमां करना,
तू मेरी एक अधूरी सी तलाश सही
जान लेता है
अधूरापन ये बयां करना


तुम
मेरा तो एक ठिकाना
तेरी नज़र की पाकीज़गी,
चाहे कहीं भी रहे तू
कब की ठहरी है यहीं
जिस्म हर रोज़ फना होता
तू तो है रूह-ए-ज़मीं
एक नज़र देख इधर तो
मेरी साँसें हैं थमीं


हम
मुतमईन है तुझसे हर पल
मुझको हर खबर है तेरी
अब तो थकता है जिस्म भी
रूह कब की है तेरी
मेरे हर पल की एक प्यास है तू
आँखों से दिल तक, तलाश है तू


तुम
मैं भी थकता रहा
जीवन के रेगिस्तानों में
नंगे पाँव चलकर,
मेरा दर्द इन कदमों में न ढूंढ
दिल के छालों में समझ
कैसे दूर हूँ तुझसे
इन अधूरे खयालों में समझ


हम
तुझको गर दर्द है, मैं उसको
चीर के रख दूँ
इस कमज़र्फ जमाने को
तेरे कदमों में बिछा दूँ
तुझपे हर चीज खुशी की
न्योछावर कर दूँ
चाँद-तारे मैं गगन के
तेरे सदके में उतारूँ


तुम
न कर इतना प्यार मुझको
कि तेरा गुनहगार हो जाऊँ
मैं जियूँ इस तरह
कि ज़िंदगी से बेज़ार हो जाऊँ
तेरा मसीहा बनने के काबिल नहीं
अर्श पे मत यूँ रख मुझको
तेरी इबादत का तलबगार हो जाऊँ



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हम
तू क्या है, ये तो बस मेरा ख़ुदा जाने
इक लम्हा भी नागवार हो
गर तुझसे अलग कोई दुनिया माने
न बोल कुछ भी
बस इन होठों पे इनायत कर दे
मुझे सीने से लगा ले
साँसों को मेहरबां कर दे
तेरे मख़मली लफ़्ज़ों की
मेरे जिस्म में हरारत हो जाए
बस इस दम तू ठहर जा
रूह की जिस्म से बगावत हो जाए
तेरी बाहों में रहूँ मैं
मेरी साँस मुझमें सो जाए
मुझे सीने से लगाना तो इस कदर
कि हवाओं की गुंजाइश न हो
हो मेरी मौत तेरे दामन में
कि मेरे दर्द की नुमाइश न हो
मेरे जनाज़े पे
तेरे पाँवो की धूल विदा करना
अपनी पलकों से छूकर 
मेरी माँग सजा देना
अपनी यादों के रंग
कफ़न पे सजा देना
जब थक जाए मेरी रूह तुझे देखकर
मेरी मैय्यत उठा देना
लूँ हज़ार जनम
तेरा साथ हो गर
वरना इन ख्वाहिशों को मेरे संग सुला देना

मैं अपनी फ़ेवरिट हूँ.


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कितना खूबसूरत है
मेरे मैं से मेरा रूबरू होना
वो हर शब्द
भावनाओं की झीनी चादर से ढ़के
मैं पढ़ती रही जो तुमने कहे
कभी खुलकर
तुमने अहसास की बारिश कर दी
मेरे दिल के मोती कभी
अपने नेह की चाशनी में पगे,
तुम तो तुम हो
ये जानती थी मैं हरदम
मैं क्या हूँ खुद में
वो लम्हे जादू के तुमने रचे,
शब्दों की दहलीज पर
कदमों की हलचल कर दी,
सरसों उगाने को
अपनी हथेली रख दी,
मुझमें कविता है मेरी
सीप में मोती की मानिंद,
समंदर की सहर पर तुमने
शाम की इबारत रच दी,
तुम हो
तो गुमां होता है खुद पर
तुम्हें खुद में
सोचती रह जाती हूँ अक्सर
तुम्हारे इन शब्दों में उलझ गयी हूँ
कि मैं अपनी फ़ेवरिट हो गयी हूँ।

ज़िन्दगी, तू ही तो है!

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वो तेरे जिस्म को छूती मेरी प्यासी ये निगाहें
न कोई और है रहबर, मांगे बस तेरी पनाहें
तू तो बस अब ही ठहर न किसी रोज़ न आ
मैं तो हूँ तुझमें ज़िबा तेरा कोई और ठिकाना

उस रोज से प्यासी है ज़मीं
तेरी चाह बस वहीं थमीं
उस ओर ही टूटा था सितारा
जिस ओर मेरी आँखों ने
तुझे जी भरके निहारा
तेरी खुशबू, तेरा जादू
बस तेरी ही तेरी कमी
तू है तो कहीं
पर यहाँ तो नहीं

मैं तेरे दर्द की शहनाई पे दिल अपना रख दूँ
हो तेरा कोई ख्वाब अधूरा उसे पूरा कर दूं
मुझे ज़ीनत न समझ दिल की ये इनायत कर
तुझे चाहूं मैं बेसबब, खुद को ज़िंदा कर दूं

ये गुलशन भी खामोश है
तेरी हर अदा पर फिदा
छू ले एक बार मेरा दर्द
सुकूँ हो जाये
मैं जागती रहूँ तुझमें
और ये रात हममें सो जाए
ये खिला-खिला सा तू
वक़्त दे बस इतना सुकूँ

मुझको देता है तू हर रोज़ गुनाहों की सजा
मैं चीर के दिल रख दूँ, तू गुनाह तो बता
तुझको चाहा है, बस चाहा है और चाहा है तुझे
ये गुनाह है तो आकर दे दे एक रोज़ सजा

लम्हा-लम्हा मरती हूँ मैं
बस एक लम्हे के लिए
मैं छोटी सी नदी
वो सैलाब तेरी मोहब्बत का
मैं बह तो गयी
पर फना होकर

दे वो लम्हा, मैं चाहूँ तुझे ये गंवारा कर ले
तेरी आँखों में सिमट जाए, ख़्वाब हमारा कर ले
है तेरे सुरूर की हसरत और बस दीवानगी तेरी
तू मेरे दिल का हो रहबर सितम भले सारा कर ले

उन्मुक्त होकर जीने दो न हमें!


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प्यार के बंधन में तो बंध जाते हैं सभी
आज उन्मुक्त होकर जी लेने दो न हमें,
सीने से लगा लो आज फिर हमको
कुछ न कहो लबों को सी लेने दो न हमें,

समंदर की रेत पर कुँवारी ख्वाहिश के नाम
तुमने हमको जो इक पैगाम लिखा था,
खुद को शहजादा
हमारे तन-मन का
और
हमें ज़िन्दगी का अंजाम लिखा था,
दिल में हूक वो फिर उठती है,
इक तलब सी मन में जागी है,
रेत के मकां ढह गए
अरमां तो अब भी सुलगते हैं,
बियाबान सा हर मंजर बनाकर चले गए,
आओ न कि अहसास की बारिश कर दो
जिस्म की खुशबू का असर जी लेने दो न हमें।

न पैसों की बारिश, न इज्जत न शोहरत
न खुशियों का बिस्तर न सोने की थाली
हमें जीने मरने की सुध ही कहाँ है
तुम्हारे लिए अब समाधि बना ली
लिखते हैं तुम्हारा नाम हर शाख पर बुटे पर
लेते हैं सुध तुम्हारी हर तितली हवा से
ढूंढते हैं तुम्हें हर मौसम में दर-ब-दर
मानसून सी तुम्हारी लुका-छिपी चलती है
आओ न किसी बारिश में एक छतरी तले
आधे-आधे हम तुम
तुम्हारे नूर का पानी लबों से पी लेने दो न हमें।

 आसमान की चूनर ओढ़नी बना दो हमारी
अपने कदमों की धूल से मांग सजा दो
दूर न करो पलकों का आशियाना
अपनी परछाईं में हमारा शामियाना बना दो
तुम्हारी आगोश में हर रात, सुहागरात है
आओ न कि हमारे दर्द को ढक दो
अपने छुवन की एक नूरानी रात दे दो न हमें
घुट रही तुम बिन बेसबब ज़िन्दगी
सियाह रातें हैं दिन बस एक उलझन
तुम्हारे आने की खुशी में महका है ये मन
वो घूँट मुक़द्दस खुशियों के पी लेने दो न हमें।

मेरी पहली पुस्तक

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