झूठ के पांव से चलते हैं किस्से
बहुत लंबी होती है इनकी उमर
हर मुसाफिरखाने पर रुकते हैं
करते ही हैं थोड़ी सी सरगोशी हवाओं में
फिर बांधकर पोटली निकल पड़ते हैं;
ये किस्से भी बड़े अजीब होते हैं
महसूस सच के बेहद करीब होते हैं
किसी के लिए शहद भरे हों जैसे
तो कहीं कड़वे करेले नसीब होते हैं,
तितलियों के पंखों में बँध जाते हैं
पक्षियों के ठौर पर इतराते हैं
विदेशी बन ठाठ से जाते हैं कभी
तो प्रवासी बन मन को लुभाते हैं कभी
उम्मीदों की गिरह से निकलते हैं
दुआ-ताबीज के बेहद करीब होते हैं
ये किस्से भी न..
ये चलने का मुहूरत नहीं देखते
और न ठहरने का ही समय
दबे पाँव महफ़िल की शान बनते हैं
ये मुखारबिन्दु से तभी निकलेंगे
जब होंठ हो हाथों से छुपे
एक मुंह से दूसरे कान का सफर तय करते हुए
न-न में भी महफ़िल की रौनकें बन जाते हैं
सच के कंधे पे अपनी मैराथन पूरी करके
उसे पार्थिव बना मुस्कराते हैं
अमीर होकर भी कितने गरीब होते हैं
ये किस्से तो बस....
राजा-रानी के किस्से
नाना-नानी के किस्से
दम तोड़ते रिश्तों के
हर घर की कहानी के किस्से
घर से गलियों से निकले
संसद के गलियारों के किस्से
हीरेजड़ित अमीरों के हो कभी या
टाट की पैबन्द से निकले गरीबों के हिस्से
ये किस्से अगर मर भी जाएं तो क्या हो?
मग़र ये बड़े बदनसीब होते हैं
ये किस्से तो उफ्फ्फ....
वेज तड़का मसालेदार होते हैं कभी
तो नॉनवेज भी निकलते हैं
साधारण शुरुआत होती है इनकी
परोसने तक गार्निश होकर मिलते हैं
पचते नहीं हैं किसी पेट में ये
तभी तो कानों से होकर मुँह से निकलते हैं
होतेे ही रहते मकानों के अंदर
गूँगी ये दीवारें बोलती कब हैं इनको
मग़र कान फैला ही देते हैं जग में
हे प्रभु, किस्से पच सकें वो ऑर्गन बना दो
या इंसानी नियत को हीलियम से भारी बना दो,
औरो की गिराने की चाहत में नंगा हुआ जा रहा
मुफ़लिसी, दर्द के ये सबसे करीब होते हैं
ये किस्से भी छि ...बड़े अजीब होते हैं
जीजी को ताई से लड़वा दें
आंखों के पहरे को नीम्बू मिर्च लटका दें
सच के गर्दन पे तलवार रखकर
पड़ोसी की बीवी को लुगाई बना दें
बेटी के ब्याह का न्योता पिता को भेजकर
आहों की भी जगहंसाई करा दें,
अपनी न किसी और की सही
श्वसुर के दामाद को ओलम्पिक में मेडल दिला दें
कहीं हो न जाए उलटफेर इतनी
काश कि शोक सभा में खुद को स्वर्गीय बना दें,
पर कहाँ सच के इतने नसीब होते हैं
ये किस्से भी न इतने ही अजीब होते हैं।