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ऐ मेरी ख़्वाहिश!

 ऐ मेरी ख़्वाहिश!

आ पहना दूँ तेरे पाँवों में झाँझर

तो जान लिया करुँगी तुझे आते-जाते

तू जाना तो उन तक जाना

और आना भी तो बस उनकी होकर.


ऐ मेरी ख़्वाहिश!

आ तेरी दीद में दूँ सिंहपर्णी की झलक,

वो बदल देते हैं मिजाज़ अपना

मौसम की तरह

तू रख आना उनकी आँखों पर बोसा.


ऐ मेरी ख़्वाहिश!

आ तुझे लिबास दूँ सरहद की वर्दी

जो क़ुबूल हो इश्क़ में मेरी शहादत

तो तू बदल आना उनकी भी

सुस्त रहने की आदत.


ऐ मेरी ख़्वाहिश!

जो मैं टूट जाऊँ जीते-जीते

तू उनकी ऐसे हो जाना

जैसे मेरी थी ही नहीं कभी

बाँसुरी बन जाना उनके होठों की

उनको रिझाना, के बाक़ी न रहे उनके पास

दिल टूटने का कोई बहाना;

साये से जुदा मेरी मौत कहाँ मुमकिन

मैं आऊँगी फिर से

एक और ज़िन्दगी के लिए

लेकर आऊँगी सुकून की झप्पी

तब मुझे दिलाना उनकी चिरायु झलक.

बस एक उनकी ही तो ज़िद है मुझको

न उनके जैसा कोई होगा

न उनसे अलग कोई चलेगा

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php