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तब भी हम होंगे...


PICTURE CREDIT:SHUTTERSTOCK

हमारे बाद हम...
क्या कहा
कहीं नहीं होंगे????
धत्त्तत..
तभी तो हम होंगे
जब भी खोलोगे यादों को
जंग लगी चूलें चरमराएँगी,
तुम उस बहँगी में लटके मुस्कराओगे,
न्यूटन की बातों में कितने टन का वजन था
हमें क्या पता
मगर बात पते की और वज़नी थी,
वो जो गुरुत्व होता है न
सारा का सारा आत्मा में होता है
ये तो धरती की छाती है
जो हमें रोके रखती है अपने ऊपर;
मन को भी न, समझो इसी तरह
चेहरे तो बहुतेरे देखे जीवन भर
हमसे अच्छे और सुंदर भी
पर आकर्षण तो मन का था,
और तब तुम
समझौते की तुला में
हमारा अपनापन न तोल पाओगे
कि हर आत्मा एक दिन निःश्वास होती है;
तुम्हारी चीखें घुट रही होंगी,
तुम तो विलाप भी न कर पाओगे
हमारी मृतप्राय काया पर,
जब हमें नहलाया जा रहा होगा
कफ़नाने को
तुम चिल्लाओगे...
'बहुत डरती है वो ठंडे पानी से..'
फिर हमारी स्थूल सी देह
बांस की डोली में लिटाओगे
शोक कम करने को
राम-नाम....बोलते जाओगे,
करने से पहले हमको अग्नि में समर्पित
तुम वो कड़वाहटें जलाओगे
जो हमको अक्सर रुलाती थीं,
कुछ हमारी गलतियाँ थीं
बाकी तुम्हारी ज़िद
जो आज बोल रही हैं,
हम कल तक एक हस्ताक्षर थे
आज दस्तावेज हो गए,
काश, कि साँसें रहते 
जीवन जी लिया होता!

साइनाइड

तोहमत के गीले तौलिए से
दर्द में तपता बदन पोछते हुए
तुम्हारे शब्दों से उभरा
हर फफोला रिस रहा है,
उन मुस्कराहटों की सीरिंज में
अम्ल भरकर बौछार करते हुए
ताजा हो रहा है वो पल एक बार फिर
कि जो मन से कभी उतरा ही नहीं,
आज फिर ज़िन्दगी
हस्ताक्षर चाहती है
मौत के दस्तावेज पर,
काश प्रेम सायनाइड होता
तो स्वाद न बताना पड़ता!

मेरी पहली पुस्तक

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