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मेरी अनाया...



तुम्हारे अंदर होती जरा सी हरकत
बढ़ा देती है मेरी आहट,
तुम्हारी मासूम सी हथेलियों की छुअन
कई बार मेरी आँखें नम कर जाती है,
जरा सा करवट बदलते
तुम्हारा कसकर पकड़ना
जैसे छूट ही जाओगी मुझसे;
तुम दूर होती ही कब हो
जब जगती हो तो सवालों में
और सोते ही खयालों में
काबिज़ हो चुकी हो पूरी मुझ पर
ऊन, सलाइयों पर
और मन में सपने बुनती रहती हूँ,
दिन भर साजो-श्रंगार और
कपड़े ही तो गुनती रहती हूँ,
गमलों और एंटीक की जगह
टेडी बियर आ गए हैं
और वो एक-एक बालिस्त के कपड़े,
कितना अच्छा लगता है इन्हें निहारना,
कौन सी ड्रेस कितनी फबेगी तुम पर
यही सोचती रह जाती हूँ,
अभी बैठने की कोशिश में हो
फिर घुटरन में दिखोगी,
और एक दिन 
इसी घर में दौड़ती फ़िरोगी,
आज मैं तुम्हें बोलना सिखाऊंगी
कल तुम मेरी आवाज बन जाओगी,
मैं हर पल गर्व में जियूंगी
तुम जब-जब मुस्कराओगी;
मेरा प्यार, मेरी अनाया
मेरी खुशी का सरमाया.

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php