जब मख़मल सी सुर्खियाँ
अम्ल के पार होती हैं
जब चाहत कलम में
तार तार होती है...
जब सरगोशियाँ न हों हवा में
और दिन पलट जाये
जब लफ़्ज़ का वरक़ पर
मरासिम ठहर जाये
जब तू न हो और मेरा वक़्त
बस तेरे साथ गुज़रे
जब तेरी आँखों में सब पढ़ें
मेरी ग़ज़ल के मिसरे
तब तो कहने देना तुम्हीं मेरे गुलज़ार हो
मेरी ज़िंदगी के चारों दिनों का एतबार हो!