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तुम ईश्वर हो

 


कितना मनहूस होता है

वो लम्हा

जिनमें हम साझा करते हैं

किसी मौत की ख़बर

असहज होता है बोलने वाला

अवाक रह जाता है सुनने वाला

वो एक लम्हा

ख़त्म कर जाता है

कितना कुछ

बंद हो जाती हैं अनगिनत रिश्तों की किताबें



बीतते सालों सी

क्यों नहीं होती ज़िन्दगी

कि जी लेते हम भी

हर जीवन के दिसम्बर की इकतीस एक साथ

पचीसवीं से इकतीसवीं तक होते जश्न

और मध्य रात्रि का प्रस्थान



सुनो ईश्वर

क्यों नहीं ले लेते रिश्वत थोड़ी

और बदल देते मौत की सेटिंग?

हमें नहीं चाहिए अभिमन्यु और भीष्म

ऐसे सजाओ न जीवन

जैसे आते हैं शीत और ग्रीष्म…



तुमने सर्दियाँ बनायीं

और तुम्हीं कराते हो सर्दियों से मौतें

गर्मियाँ भी तुम्हारी

और इनसे होता हृदयाघात भी तुमने कराया



कोई रील भर जीता है

किसी का जीवन एण्डलेस वीडियो

कहीं वात्सल्य तो कहीं माया

कैसे कर पाते हो इतना स्वांग

आओ कभी चाय पर

ओह साॅरी ‘फीकी चाय’ पर

क्या है कि मध्यम वर्ग और गरीब हो गया

बदन से कफ़न तक छिनवाकर

गरीब जो है न, खो चुका है अपना ख़िताब

छोड़ो तुम्हें क्या पड़ी,

शान बघारनी है मुझे भी

उधार की शकर की मीठी चाय पिलाकर

जैसे शान बघारी जाती है

एक दिन की सड़क बनाकर

‘कट इट आउट’



चाय पीकर सेल्फी लेना

और करना प्रेस कांफ्रेंस भी

कितने सुखी हैं सब यहाँ

तुम ईश्वर हो

जो कह दोगे मान लेंगे हम

जो करते हो

उसे भी तो कर ही लेते हैं एक्सेप्ट 


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