मैंने पहले मौन चुना
तब ईश्वर छोड़ा
बहुत शौक़ रहा उसे
सफेद संगमरमर के
बुतों के पीछे छुपने का,
बुत बनने का
अब बनता रहे बुत
मैं नहीं बुलाती उसे
काहे का ईश्वर है वो
जब उसे यह तक नहीं पता
कब सड़कों पर निकलना है
कब बनना है तमाशबीन
मजाक बनाता है
अपने लिए रची आस्था का
यह कथा तो बहुत सुन ली
कि कृष्णा की पुकार पर भागा आया
मगर कहाँ जाये
कलयुग की द्रोपदी;
कहाँ होता है वो
जब बढ़ रहा होता है
गरीबों की थाली में छेद;
तब-तब भी नहीं आता
जब-जब उजड़ती है किसी माँ की गोद
कभी-कभी लगता है
इल्युमिनाटी स्कूल का है ईश्वर
स्वयं भी उपासक है लूसिफर का
और रहता है धनाढ्य में कलयुग बनकर
हँसी आती है
सो कॉल्ड संतों के उपदेशों पर
जब कहते हैं
‘माया के पीछे मत भागो’
ज़रा सोचो
कितनी माया बटोरी होगी
इस भीड़ से माया छुड़ाने के लिए
माया की गोद में बैठकर
कह देते हैं, माया बुरी है
जाने वो ईश्वर के पीछे हैं
या ईश्वर उनके पीछे
ईश्वर सत्ता का है
तभी तो प्रमाणपत्र दिलवा देता है
आस्तिकता-नास्तिकता का
श्श्शशश
यह पूँजीपतियों का ईश्वर है
यह बाहुबलियों का ईश्वर है
अगर कभी आ गया सामने
तो मत समझे कि पूछूँगी
‘कहाँ रहे इतने दिन’
लौटने वालों से बस इतना ही कहना है
‘अब आये ही क्यों’
करना चाहे कोई मेरा विरोध
तो गुरेज़ नहीं मुझे
क्या है कि मेरा
डी एन ए ही अलग है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें