•लिखो विरुपा, विलक्षणी को
नायिका अपनी कविताओं की,
जुगनू की डाह पर गुदड़ी सीती
म्लेच्छ को लिखो
नवें माह के गर्भ पर नवीं जनने को तैयार
उस विरल पर, उसकी मंथरा सास पर लिखो
तुम आधे पूरे शब्दों में कुछ कच्चा पक्का भी लिखना
तुम जन्नत जैसी हूरों पर कुछ अच्छा सच्चा भी लिखना
लिखना तो
सरकंडे की आँच पर रोटी बेलती
उस स्त्री पर लिखना
जिसने चूल्हे की रोशनी में पढ़कर
अभी-अभी यूपीएससी की परीक्षा निकाली है
तुम ढ़लते यौवन की बाला पर गिरती हाला भी लिखना
तुम चम चम चमकाती आँखों की मधुशाला भी लिखना
पर उसके तुम बनो शूलपाणि
और फेंक दो कवच उस स्त्री की अस्मिता पर
जिसने किया है सौदा भूख के बदले
मत बनो चिरकुटों के प्रयोग का अस्त्र
मत स्वीकारो ‘वाह’ कुशीलियों की
ना बन पाना स्वर किसी स्त्री के ओज का
तो मत लिखना
कभी किसी स्त्री के लैक्मे आई लाइनर के बारे में,
कजरारे नैन से पहले
नशीली चितवन से पहले
स्त्री की भृकुटी, ललाट पर लिखो
तुम लिखना किसी अबोली का भय शब्दों में अपने लिखना
तुम लिखना किसी अपाहिज को और चिंतन भी उसका लिखना
तुम लिखना पंगु नहीं चढ़ते गिरि पर
तुम लिखना उनका नहीं कोई ईश्वर
वेद, ऋचा झूठी हैं आयतें
उनमें विद्रोह भयंकर है, उनकी उदासी का स्वर
तुम लिखना पशुवत मानव को उसके भीतर के दानव को
तुम लिखना उस ईश्वर को और आउटडेटेड अप्प दीपो भव को
भय, वेदना, विसंगति ही क्या
छूटना और प्राप्ति ही क्या
जब लिखना किसी नायिका को तब सर्वप्रथम भार्या लिखना
कुछ लिखने का मन हो तो फिर, प्रेम उसी से प्रायः लिखना
1 टिप्पणी:
लिखो विरुपा, विलक्षणी को
सुंदर
आभार
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