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विश्वास का तारा

अँधेरे जब हँसते हैं

तो बहुत ज़ोर ज़ोर से हँसते हैं

बिल्कुल तुम से

मैं उस हँसी को महसूसने के लिए

पूरा दिन एक पैर पर चलकर

चलते-चलते निकाल देती हूँ

फिर भी उजालों से

कोई शिकायत नहीं करती कभी

और तुम आते भी हो तो

मौन के रेशमी सूत में लिपटकर...

एक हठ से धुला रहता है तुम्हारा चेहरा.

तुम्हारा मौन टूटना कहीं मुश्किल है

आकाश में विश्वास का तारा टूटने से.

13 टिप्‍पणियां:

Rohitas Ghorela ने कहा…

Waah
Very nice.
नई रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और हृदय स्पर्शी रचना।

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत। बहुत सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना।
शिव त्रयोदशी की बहुत-बहुत बधाई हो।

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2064...पीपल की पत्तियाँ झड़ गईं हैं ... ) पर गुरुवार 11 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति

Roli Abhilasha ने कहा…

थैंक यू!

Roli Abhilasha ने कहा…

धन्यवाद!

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत आभार आपका!

Roli Abhilasha ने कहा…

स्नेहिल आभार माननीय!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार!

Swapan priya ने कहा…

Stupendous!!👏👏

मेरी पहली पुस्तक

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