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तुम्हारी उष्णता को घूँट-घूँट पियेंगे!


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हमारे मन के अधूरेपन को
आकार देती तुम्हारी पूर्णता
और तुम्हारे न होने पर
पल-पल पिघलती हमारी लघुता,
इसको साकार करना है हमें
नीलगगन का मिलन बनकर।
तुम्हें चाँद क्या कहें
तुम तो आसमान हो हमारे,
तुम्हारे फैलाये हुए डैने ही तो
हमारी छाँव हैं;
सुनो आज की रात थाल में
हमारे स्नेह का
हल्दी और अक्षत होगा,
छलनी से चमक रही हमारे चाँद की आभा
श्रंगार के यौवन को और बढ़ाएगी,
तुम रूप, रस, माधुर्य भरा घूँट पिलाओगे,
हमें प्रेम की गलियों में
दामन थामकर टहलाओगे,
तुम्हारे लिए गणेश चतुर्थी नहीं
हम तो हर वार व्रत रहेंगे,
आज की रात हम प्रेम का मधुमास जियेंगे,
तुम्हें पल-पल दिल में उतारेंगे,
तुम्हारी ऊष्णता का घूँट-घूँट पियेंगे,
अहसास की चादर तले
सुखन की धीमी आंच पर,
तुम्हारे नेह की हांडी में
जीवन का लाजवाब दाल-भात चखेंगे।

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मेरी पहली पुस्तक

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