तुम्हारी नर्म-गर्म हथेलियों के बीच खिला पुष्प
और भी खिल जाता है, जब
विटामिन ई से भरपूर चेहरे वाली तुम्हारी स्मित
इसे अपलक निहारती है
तुम्हारा कहीं भी खिलखिलाकर हँसना
मेरे आसपास आभासित तुम्हारे हर शब्द को
तुम्हारी गंध दे जाता है... महका जाता है
कण कण में तुम्हारा होना.
वही तो करते हो तुम जो अब तक करते आये
बना देते हो चंदन अपने शब्दों को
यही है मेरी औषधि, ये शब्द
डाल देते हैं मेरे चिन्मय मन पर डाह की फूँक
शाँत करने को मेरे मन के सारे भाव...
तत्क्षण मेरा मन वात्सल्य में डूब जाता है
झूम उठती है मेरे मन की मेदिनी
तुम्हारा पग चूमने को...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 17 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका बहुत धन्यवाद दीदी.
हटाएंआभार!
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार आपका!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
आभार आपका!
हटाएंवाह! बहुत ही सुंदर😍💓
जवाब देंहटाएंआभार मनीषा जी!
हटाएंवाह!बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंआभार शुभा जी!
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार महोदय!
हटाएंविटामिन ई अच्छा प्रयोग है|
जवाब देंहटाएंदिल को छूती सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंलाजवाब पंक्तियाँ !
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