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अब तक
तुम्हारी परछाईं बनकर
जिया है हर लम्हा,
तुम्हारे पास मगर दूर रहकर
तय किया है हर सफर।
तुम्हारी तन्हाइयों से लिपटकर
मनाई है अपनी सुहागरात,
मैंने पहने हैं
तुम्हारे अहसासों के जेवर,
कहाँ है तुम्हारे नाम का सिंदूर,
मेरी बेनूर ज़िन्दगी
सोलह सिंगार मांगती है,
मुझे भी वो रात दो न,
नहीं बनाना है मुझे तुमको
अपने जीवन का
बिखरा हुआ पन्ना,
कहो न अब तुम्ही हो
मेरे सपनों के राजकुमार
और मैं तुम्हारी अर्धांगिनी।
तुम्हारी परछाईं बनकर
जिया है हर लम्हा,
तुम्हारे पास मगर दूर रहकर
तय किया है हर सफर।
तुम्हारी तन्हाइयों से लिपटकर
मनाई है अपनी सुहागरात,
मैंने पहने हैं
तुम्हारे अहसासों के जेवर,
कहाँ है तुम्हारे नाम का सिंदूर,
मेरी बेनूर ज़िन्दगी
सोलह सिंगार मांगती है,
मुझे भी वो रात दो न,
नहीं बनाना है मुझे तुमको
अपने जीवन का
बिखरा हुआ पन्ना,
कहो न अब तुम्ही हो
मेरे सपनों के राजकुमार
और मैं तुम्हारी अर्धांगिनी।