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माँ क्या कोई अभागी कभी डोली नही चढ़ती ?


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जब भी देखती हूँ अपने सूने पाँवों को
टीस सी उठती है मन में
मुझे भी अपने पाँवों में
महावर लगानी है,
सुननी है वो छम-छम
जो मेरे पाँव की पायलों से हो,
भले ही इन कलाईयों को
खानदानी कंगन न मिले
पर उस घर के बुजुर्गों का
आशीष तो मिले
जिस घर मेरी डोली जाएगी,
मेरा ब्याह कही दूर देश कर दे
मैं आते-जाते तुझसे मिलती रहूंगी,
माँ, मेरे लिए दूल्हा मत ढूँढना
जो सेहरे के पीछे छुपा
महज एक चेहरा हो,
मुझे तो जीवनसाथी चाहिए,
मेरा मन, मेरी देह
मेरा सर्वस्व उसका,
वो भी मुझे घर की लक्ष्मी माने,
उसकी राह तकूँगी
वो हर बार मेरे लिए
प्यार लेके लौटे,
उसके बच्चों को अच्छा इंसान बनाऊँगी,
वो मुझे मेरा मान दे,
जब भी उसकी आँखों में प्यार से देखूं
मुझे विश्वास दिखे,
जब भी उसके सीने में सर छुपाऊँ,
मैं हर दर्द और डर से मुक्त हो जाऊं,
माँ, लाएगी न मेरे लिए
मेरे मन का साथी,
मैं काजल, गजरा, बिंदी,
झुमके, चूड़ी, हार,
नथ, पायल, महावर में आ जाऊं,
उससे कह देना
बस चुटकी भर सिंदूर ले आये
और हाँ
दहेज़ में वो चाबुक
मेरे साथ विदा कर देना
जो बापू तुझपर चलाता है,
हाँ कह दे न माँ
कहीं ऐसा न हो
बापू फिर पीकर आ जाये,
आज फिर मेरा ये सपना बिखर जाये,
माँ क्या गरीब लोगों की कोई सीरत नहीं होती
क्या कोई अभागी कभी डोली नहीं चढ़ती ?

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