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हमारे रिश्ते का सच

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क्या था
हमारे रिश्ते का सच
हम कहें
तो एक विश्वास
और तुम कहो
तो एक मज़बूरी,
कभी
हमारा आमंत्रण
तुम्हारी स्वीकृति
कभी तुम्हारा प्रणय
और हमारा समर्पण,
कभी जब
बहुत प्रेम के क्षणों में
याद करते हैं
उस पल को
जब तुमने
सहमति दी थी
तुम्हे चाहते रहने की,
जब तुमने
खंगालना चाहा था
मन के निक्षेपों को,
जब तुमने
पढ़नी चाही थी
शब्दों की आवृत्ति,
जब तुम्हारे
मन ने अनुभव की थी
हमारे भीतर की ऊष्मा,
जब तुम्हारी आँखों ने
बेध दिए थे
हमारे सारे रहस्य,
जब तुम समाते गए थे
हमारे अंतर तक
कहीं दूर,
जब हमने और तुमने
साथ-साथ जिए थे
कुछ पल……
तब लगता है
कुछ तो हुआ था
हमारे बीच
जिसका स्पंदन
आज तक है

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मेरी पहली पुस्तक

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