" माँ, मैं जीना नहीं चाहती ! "

माँ
वापिस लौटना चाहती हूँ
तुम्हारे पास,
अपनी गोद में
सर रखने दो न मुझे
आज रो लेने दो जी भरकर
बच्चा बनने दो न मुझे
मैं बड़ी हुई ही कहाँ थी ?
क्योंकि
बड़े लोग गलतियां नहीं करते
न ही देते हैं
उल्टी-सीधी दलीलें
माँ
आज फिर डाँटो न मुझे
देर से उठने पर
ताकि मैं उगता हुआ सूरज देख सकूँ
और बच जाऊं
हर रात
सिसकियों में गुजारने से
बचा लो न मुझे माँ
अब और नहीं टहलना चाहती
धूप और छाँव के आँगन मे
माँ समा लो न मुझे
अपने नाभि-सूत्र में
जहाँ से
मेरे जीवन की डोर बंधी थी
मैं थक गयी हूँ माँ
और जीना नहीं चाहती !

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मेरी पहली पुस्तक

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