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मेरे कंधे पर चुप्पियाँ बिठाकर जब-जब वो बटोरने जाता है उसके कंधे के लिए तितलियाँ... मुझमें प्रेम दोगुना हो जाता है...प्रेम और प्रेम के लिए की गयी ईर्ष्या.

अब मैं भी थमा दिया करूँगी उसकी यादों को ख़ामोशी. कुछ भी हो प्रेम तो बने रहने देना है न!

17 टिप्‍पणियां:

  1. .प्रेम और प्रेम के लिए की गयी ईर्ष्या.-----
    बहुत खूब अभिलाषा जी | प्रेम के साथ ईर्ष्या यूँ ही उग जाती है खरपतवार की तरह !है ना -- ?

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    1. बिल्कुल सही कहा आपने प्यारी सखी...ईर्ष्या प्रेम का प्रकांड स्वरूप है. इसके अस्तित्व से इनकार ही कौन कर पाया. धन्यवाद आपका ❤️

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  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 09 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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  3. बहुत जेरूरी है प्रेम का होना ....
    अच्छा लिखा है ...

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  4. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति .
    सादर

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