अब आ जाये अगर गुस्सा मुझ पर
तो दूर न कर देना ख़ुद से
तो पहले ही जता देना मुझसे
मैं चूम ललाट मना लूँगी
रख अधरों पर तुम्हारे तर्जनी अपनी
अंगुष्ठ से ठोढ़ी सहला दूँगी.
अब आ जाये अग़र गुस्सा मुझ पर
जो चाहे मुझको तुम कह लेना
दिल हल्का अपना कर लेना
आवाज़ जो तुमको देती रहूँ
कुछ मत कहना गुस्सा रहना
मैं रात धरा के शानों पर
रोते हुए बिता दूँगी
जब आऊँ अगली सुबह तुम तक
तुम चाय का प्याला उठा लेना
कुछ मत कहना चुप ही रहना
बस लिखते जाना, पढ़ने देना.
अब आ जाये अग़र गुस्सा मुझ पर
मेरे हक़ की स्याही और को तुम
न देना, इतना सुन लेना
दो-चार रोज को मौन भला
महीनों मातम में न बदल देना
गले लगा लेना हमको
या गला दबा देना मेरा
पर दर्द से अपने न जुदा करना
मुझे कभी-कभी तो मिला करना
अब आ जाये अग़र गुस्सा मुझपे
बस गुस्सा ही किया करना