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विवाह से पूर्व

 आज जैसे ही शादी के लिए हाँ बोला मैंने, सभी के चेहरे अचानक खिल उठे. तुम्हारा भी फ़ोन आ गया. बंद थी जो बात इतने दिन से कैसे शुरु कर पाऊँ दोबारा. मन में कुछ नहीं है अब. तुम लोगों ने जो निर्णय लिया और जिस तरह से मेरी स्वीकृति की मुहर लगवायी... मैंने अपनी नियति मान लिया इसे. 


आने वाले सोमवार इंगेजमेंट की रस्म है और हर वक़्त की तरह मेरे मुँह से निकल गया, "जो पसन्द हो बनवा लेना. मुझे तो पहनना ही है बस." तुम सब मुझे शायद आख़री बार 'पागल लड़की' कहकर हँस रहे होगे क्योंकि रस्म की पहली पोशाक पहनने से पहले मुझे अपना मन उतार कर रखना होगा कहीं और...किसी के पास. मुझे ख़ुद पर दुनियादारी का लिबास डालना है.

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php