Romantic Poetry लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Romantic Poetry लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

तुम्हें ज़िंदगी कह तो दिया

उस रोज़ पूछा था किसी ने हमसे
तुम्हारा नाम क्या है
हमने ये कहकर उन्हें
मुस्कराने की वजह दे दी
कि एक दूसरे का नाम न लेना ही तो
हमारा प्रेम है...
कितने बावले हैं लोग
कि वो तुम्हें कहीं भी ढूंढ़ते हैं
मेंडलीफ की आवर्त सारणी में,
न्यूटन के नियम में,
पाइथागोरस की प्रमेय में,
डार्विन के सिद्धांत में,
अंग्रेजी के आर्टिकल में,
हिंदी के संवाद में,
विषुवत रेखा से कितने अक्षांश की
दूरी पर बसते हो,
जानना चाहते हैं अक्सर लोग
बातों ही बातों में.
पर हम तो तुम्हें बस
ज़िन्दगी के नाम से जानते हैं.
कैसे कहें लोगों से
हम तुम्हें याद तक नहीं करते
तुमसे निकलने वाली चमक को
आइरिश अवशोषित कर
उर तक प्रेषित कर देता है,
और जब तुम हृदय में हो
तो निकट दृष्टि दोष होना स्वाभाविक है.
तुम हर कदम इस तरह साथ हो
कि तुम्हारी छाया में
अपना अस्तित्व खोना
हमें अप्रतिम होने का भान कराता है,
अनुभव करते हैं हर रात जब तुम्हें
अपने बिस्तर की सिलवटों में
गर्व होता है...
जीवन में तुम्हारे होने पर,
कि कितने ही और जन्म मांग ले
ईश्वर से
जीवन की समानांतर पटरी पर चलने को
तुम्हारे साथ
तुम्हारे लिए
नाम के नहीं...जन्म-जन्मांतर के साथी.

जब हम...तब तुम


जब हम घर का आख़िरी दिया बुझा दें,
जब हम भीतर आकर
किवाड़ की सांकल चढ़ा दें,
जब हम इन पाँवों पर
होंठों की लकीर सजा दें,
जब हम बदन से लिबास की
दूरी बढ़ा दें,
जब हम गुरुत्व हम-दोनों का
कुल जमा कर दें,
जब हम घनत्व साँसों की हवा का
गुना कर दें,
जब हम हृदय पर हाथ रखकर
संदेश उत्तेजना का रवां कर दें,
जब हम नमी उन होंठों की
जवां कर दें,
........
क्या तुम आँखों में देखोगे
हमसे ये पूछोगे
'मिज़ाज कैसा है जनाब का'
तब तो हमें दुल्हन बना लोगे न,
अपनी बाहों के घूँघट में हमको
छुपा लोगे न,
इस संगमरमर की नक्काशी को
तराशोगे न,
चक्षुओं से दो क्षीर मटकों को
ताकोगे न,
हाथों में भरकर अपनापन
जताओगे न,
उस नमी से रात शबनमी
बनाओगे न,
अपनी चोटों से रात भर
जगाओगे न,
हर वार पर आह, सिसकी दिलाओगे न,
जब क्रिया होगी तभी न
प्रतिक्रिया का बिगुल बजेगा!

हममें हमको बस...'तुम' दे दो



कुछ उलझा-उलझा सा रहने दो
कुछ मन की हमको कहने दो
आँखों से बोल सको बोलो
कुछ सहमा-सहमा सा चलने दो
हर बात गुलाबी रातों की
हया के पहरे बैठी है
है रात अजब शर्मीली ये
हमको-तुमको यूँ निहार उठी
अब हाथ कलेजे पर रखकर
कुछ हल्का-हल्का सहने दो;
तुम हो, हम हैं सारा आलम
मदमाता यौवन, भीगे हम-तुम
आ जाओ छुपा लो हमको
मन सावन है, तन वृंदावन
मत रोको हम प्रेमाकुल हैं
बस मद्धम-मद्धम सा झरने दो;
एक ऐसी हिलोर उठी हिय में
आह की हूक जगी औ बढ़ी
तोड़ो भी हर सकुचाहट को
देखें तो जरा मसली सी कली
हममें हमको बस 'तुम' दे दो
उफ़्फ़ बिखरा-बिखरा सा रहने दो.

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php