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काश कि मां रेगिस्तान हो जाती...!

"कहां था बेटा...फोन तक नहीं उठाया..." मां की आवाज डूब रही थी पर तीन हफ़्ते बाद लौटे बेटे को देखकर आंखें चमक उठीं.
"अब बच्चा नहीं रहा मैं और बात-बात पर फोन करना मेरी आदत नहीं. वैसे भी अगर कुछ हो जाता क्या कर लेती. ट्रेन पलटने लगती तो हाथ लगाकर रोक लेती क्या?" बेटा सप्तम स्वर में बोल रहा था तभी फो
की घंटी बजी.
'हां जान, ठीक से पहुंच गया हूं. मैं तुम्हें फोन करने ही वाला था. और मॉम कैसी हैं...मेरा बिल्कुल भी मन नहीं था कि इस हालत में तुम्हें छोड़कर आऊं. कैसे देखभाल करोगी उनकी...' कहता हुआ बेटा एक हाथ में ट्रॉली बैग, दूसरे में हैंड बैग और कान के नीचे मोबाइल दबाए हुए कमरे में चला जा रहा था उधर दरवाजे के पीछे खड़ी मां की सांसे घुट रहीं थीं. गर्लफ्रेंड की मां की तीमारदारी के लिए पिछले तीन हफ्ते से 500 किलोमीटर दूर अनजान सी आबो-हवा में जीकर अब शायद वो दर्द की चाशनी में भीगे आंसू अनदेखा कर सकता है. काश कि मां भी रेगिस्तान हो जाती!

माँ होना...

मेरे भीतर की स्त्री ने दम तोड़ दिया था,
जब माँ सा ये कलेजा मजबूत किया था।
स्नेह दिया था, किसी का खून था उसमें,
वो नौ महीने तो मेरे गर्भनाल से जिया था
सामजिक सरोकारों में परखी जाने लगी,
जैसे ममतामयी होकर अपराध किया था।
रातों में रखके सोने लगी ममता सिरहाने,
वेदना और प्रेम, फ़र्ज़ ने निचोड़ दिया था।
सिंदूर, महावर अग्नि के फेरे भुलाने पड़े
जब सारे ही रिश्तों ने मुंह फेर लिया था।
अभागन सी कभी, खुद में बैठी थी ठगी,
रात अकेले जागकर मैं नैपी बदलती रही।
सारे बच्चे ऊँगली थामकर जब दौड़ने लगते,
मेरे बच्चे की घुटरन के मुझे अरमान जगते।
क्या ख़ुशी देती जिंदगी सँवारने में लग गई,
बस डॉक्टर और दवाइयों तक सिमट गई
मेरा संसार बड़ा है पर हूँ मैं नितांत अकेली,
जीवन जीने के लिए, सारी रस्मों से खेली।
मुझे प्रेम और दर्द बेपनाह चिढ़ाता है जब,
बच्चा अकेले अस्तित्व पर सवाल उठाता है।
सारी ख़ुशी तो दे दूँ पर रिश्ता कहाँ से लाऊँ,
उसे वो प्यार देकर अपना सम्मान बचाऊँ।

एक करुण माँ की पुकार

मेरी अनाया...



तुम्हारे अंदर होती जरा सी हरकत
बढ़ा देती है मेरी आहट,
तुम्हारी मासूम सी हथेलियों की छुअन
कई बार मेरी आँखें नम कर जाती है,
जरा सा करवट बदलते
तुम्हारा कसकर पकड़ना
जैसे छूट ही जाओगी मुझसे;
तुम दूर होती ही कब हो
जब जगती हो तो सवालों में
और सोते ही खयालों में
काबिज़ हो चुकी हो पूरी मुझ पर
ऊन, सलाइयों पर
और मन में सपने बुनती रहती हूँ,
दिन भर साजो-श्रंगार और
कपड़े ही तो गुनती रहती हूँ,
गमलों और एंटीक की जगह
टेडी बियर आ गए हैं
और वो एक-एक बालिस्त के कपड़े,
कितना अच्छा लगता है इन्हें निहारना,
कौन सी ड्रेस कितनी फबेगी तुम पर
यही सोचती रह जाती हूँ,
अभी बैठने की कोशिश में हो
फिर घुटरन में दिखोगी,
और एक दिन 
इसी घर में दौड़ती फ़िरोगी,
आज मैं तुम्हें बोलना सिखाऊंगी
कल तुम मेरी आवाज बन जाओगी,
मैं हर पल गर्व में जियूंगी
तुम जब-जब मुस्कराओगी;
मेरा प्यार, मेरी अनाया
मेरी खुशी का सरमाया.

वुड बी मदर हूँ मैं....

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तुम जैसे-जैसे बड़े हो रहे हो
मेरे भीतर
मेरी देह आकार बदलने लगी 
उठना-बैठना, चलना-फिरना
सब कुछ बदल गया 
मेरी दिनचर्या के साथ,
यहाँ तक कि मेरी सूरत भी
कभी खूबसूरत दिखती मैं
तो कभी न देख सकने वाली सूरत
महसूसना चाहती हूँ
तुम्हारा हिलना-डुलना हर पल
जब रातों में तैरते हो मेरे अंदर
बहुत जी चाहता है
थपकी देकर सुला दूँ
अनायास ही लोरी आ जाती है
होंठों पर,
पूरे शरीर में आ गए हो तुम
कीवी, नींबू, सन्तरा
और अब तो एक बड़े आम 
के आकार में दिखते हो
सिर पर आए बालों ने
तुम्हें बच्चा बना दिया,
सुन सकते हो न मुझे
तभी तो हर तेज आहट पर
प्रतिक्रिया महसूसती हूँ तुम्हारी
अपनी भूख से ज़्यादा 
खाने लगी हूँ आजकल
वजह-बेवजह डॉक्टर को फ़ोन लगाती हूँ
झेल जाती हूँ उसका तंज भी
कि मैं दुनिया में 
पहली वुड बी मदर तो नहीं,
मेरी हजार चिन्ताएं
और इनकी एक तसल्ली भरी छुवन
मेरी हर उत्सुकता को पल में शांत करते
मेरा रोम-रोम खिल जाता
जब ये कृतज्ञ भाव से आँखें झुकाते
मानो मुझे धन्यवाद दे रहे हों
जीवन की सबसे बड़ी खुशी 
अर्पित करने को
... और फिर तुम
कुलांचे भरते रहते अंदर
जब तक कि
ये अपने हाथों की थपकी से न सुला दें।

फीलिंग्स का गूगल सर्च

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वो सहमा-सहमा सा था मेरे भीतर 

और मैं इठलाई सी
यूँ लगे कि
सारे जहां की
रौनकें मुझपे छायी सी,
एक ऊर्जा सी थी
मेरे अंदर दिव्यता समाने की
मैं माँ बनने जा रही
ये तो सच ही था
पर मैं क्या खोने जा रही
ये अलग सा प्रश्न था अंदर,
जब मैं बहुत प्रेम में थी
मेरे अंदर का मैं
खो दिया था मैंने,
आज जब प्रेम का अंकुर 
प्रस्फुटित हुआ
मैं अपने मन का बच्चा
खोने जा रही
क्योंकि अब तुम
खसखस के बीज वाले आकार से
तिल के बीज वाले आकार में
रूपांतरित हो चुके हो,
तुम्हारे चेहरे के कुछ हिस्से उभरे होंगे
65 की रफ्तार से धड़कने वाले
दिल की नली भी,
तंत्रिका-नली भी तो बन गयी होगी;
पाचन-तंत्र और संवेदी-तन्त्र
भी बनने लगे होंगे,
उपास्थि आ गयी होगी,
बड़ा सा दिखता है सर अभी,
बहुत से सवाल आते हैं मन में,
सामान्य हो जाती हूँ 
जब इनका तसल्ली भरा हाथ
मेरी हथेली को गर्माहट देता है;
गूगल बताता है मुझे
तुम्हारी लम्बाई इंचों में
और वज़न ग्राम में,
पहले सेमेस्टर के आखिर में
तुम अपने पूरे वजूद में हो,
तुम्हारी मुट्ठी खुलती है, बन्द होती है
मगर गर्भ की दीवारों पर 
नाखूनों के निशान नहीं आते
मेरा समूचा अस्तित्व सिमट गया तुझमें
और तुम मेरे अहसास में ज़र्रा-ज़र्रा।

माँ बनना मुश्किल तो नहीं!


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माँ बनना इतना मुश्किल नहीं है
दर्द अहसासों में कहाँ गुम हो जाता है
किसे खबर रहती,
दिन उम्मीदों में
और रातें सपनों में हवा होती हैं,
जो नहीं है
उसके होने का अहसास
सर्दियों में खिली
मुट्ठी भर धूप की तरह है,
है तो अजन्मा
पर सोच की उँगली थामे
देखो न कहाँ खड़ा है;
हर दरख़्त के साये में
हर दीवार से बड़ा है,
जब नरम हथेलियों की गुनगुनाहट में
करवटें लेता है,
रोम-रोम खिल उठता है,
यूँ तो है सुरक्षित
मेरे अंदर नौ महीने,
पर सीने से लगा लूँ अभी
मन मचल उठता है:
कितना कलरव करता है अंदर
सिसकियां भी भरता है कभी,
घूमता है, फिरता है, पुकारता है
जैसे कहता हो
मुझे दुनिया देखनी है अभी;
पहले दिनों में होती थी
महीनों की गिनती
अब तो हर घण्टे हिसाब होता है,
तुम्हारे होने में हम दोनों
बस तुम्हारे हो गए
उनकी शिकायतें सर-आंखों पर
पर तुम सबसे प्यारे हो गए,
जब सुनाती हूँ उन्हें तुम्हारी धड़कन
दूरी हमारे
और भी करीब लाती है,
तुम सांस लेते हो मेरे भीतर
और खुशी हमारी मुस्कराती है:
इतना मुश्किल नहीं है माँ बनना
मैं तो महसूसना चाहती हूँ
तुम्हारे जन्म का पल
नींद का इंजेक्शन लेकर नहीं,
प्रसव-पीड़ा सहते हुए,
योनि-मार्ग से निकलते हुए,
तुम्हारा पहला रोना
मैं सुन सकूँ
इतना मुश्किल भी नहीं है
माँ बनना
मैं गर्व से कह सकूँ।

मेरी पहली पुस्तक

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