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दिलवालों की दिवाली


दीवाली के अवसर पर दिल खोलकर खुशियाँ मनाइए साथ ही उन्हें ऐसे लोगों के साथ बाँटिए जिनके लिए ये अनमोल हैं। इनकी मेहनत आपके घरों को सजाती है। 

गरीब की दिवाली



खुशबुएँ सिधारीं
हेराई गयी मिटिया
रोई के आंख मूंदे
छज्जे बैठी बिटिया
दिया-बाती तेल नाइ
ना खावे को रोटिया
उल्लू लक्ष्मी लै उड़े, पूजे
सालिगराम की बटिया
कपड़ा ना बताशा-खील
कहाँ मिले खुटिया
गरिबिया से नेह बढ़ि
अंसुवन से पिरितिया
बस सपना मा रहि गईं
देवारी की बतिया...

एक और दीवाली की सुबह।

दीवाली की धमधमाती रात की अगली सुबह यूँ तो शांत होनी ही थी। ऐसे में ड्राइव करने का अलग ही आनन्द होता है। पर आज कुछ ज़्यादा ही मौन था चारों ओर। घरों के खिड़की, दरवाजे लॉक थे कि लोग छुट्टी मना रहे थे, इससे भी बड़ा एक कारण था मौनता का कि रोड किनारे हर जगह जानवर चित्त पड़े थे। ये वो प्रहरी हैं जो सुबह होते ही मुस्तैद हो जाते हैं पर आज चौकस नहीं थे क्योंकि जब हम तेज आवाज में पटाखे फोड़कर दीवाली की खुशियां मना रहे थे तब ये छुपने को जगह तलाश कर रहे थे।
हम अपनी खुशियां मनाने के लिए कभी-कभी किसी को दूर तक परेशानी में डाल देते हैं। इन जानवरों का क्या क़ुसूर था कि रात भर आराम की नींद नहीं सो पाए। दीवाली की खुशियां जरूर मनाइए पर अपने आस-पास जानवरों, बुजुर्गों और बच्चों का ख़याल करके। ऊंची-ऊंची बिल्डिंग की छोटी तंग गलियों में डेसिबल की धज्जी उड़ाते फोड़ू बम महज पैसों का बेजा प्रदर्शन है। बेहतर होगा कि आप अपनी सामग्री को एकत्रित कर एक पार्क में निकल जाइए और खूब मनाइए दीवाली का जश्न।
त्योहार मनाना ग़लत नहीं बस आपका तरीका सही हो।

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php