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लक्ष्मणरेखा...बस तुम्हारे लिए

प्रिय ईश,

तुमसे कुछ भी कहना, बातें करना तुम्हें तो पता ही है मुझे कितना अच्छा लगता था |याद है न अक्सर बिना किसी बात के मैं तुम्हें फोन कर दिया करती थी। कभी-कभी तुम अलग ही अंदाज़ में दिलकश बातें किया करते थे और कभी व्यस्तता के चलते 'कुछ जरूरी हो तो बताओ नहीं तो बाद में बात करना' ये कहकर डिसकनेक्ट कर दिया करते थे पर मुझे तो बस इसी की आदत थी। एक बहाना चाहिए था तुमसे बात करने का। आज फिर से तुमसे वो सब कुछ शेयर करने का मन कर रहा है। वो ढेर सारी बातें जो सिर्फ प्यार में ही होती हैं।

आज भी याद करती हूँ अपनी पहली मुलाक़ात मन सिहर उठता है, लगता है कल की ही बात हो। ज़िद करने लगती है हर साँस की, उसे तुम्हारी ही धड़कनों की तलाश है। तुम्हारी पहल करने की हिचक आज तक बरकरार है लेकिन मैं  अभिव्यक्ति में कभी पीछे नहीं रही...पहली बार भी नहीं जब तुम चुपके-चुपके मुझे देखते तो रहे थे पर तुम्हारे करीब जाने की कोशिश तो मैंने करी थी। कितना बेख़ौफ़ होकर मैंने तुम्हारा हाथ थाम लिया था। यहीं से शुरू हुआ था हमारे बीच बातों का सिलसिला। तुम्हारी कृतघ्न होने और मेरी दिल को छू लेने वाली पहली बात, 'थैंक यू आपने बहुत सही टाइम पर आकर मुझे बचा लिया वरना मेरी ड्रेस खराब हो जाती।'

'माई प्लेज़र' कहकर मैं मुस्करा भर दी थी।

तुम अपने काम में मशगूल रहे और मैं तुम्हारे सपनों की दुनिया में और इन सबके बीच हमारी मुलाकातें होती रहीं। तुम्हारी बेपनाह सादगी ने मेरे दिल की मोहब्बत को जवान कर दिया था। मैं तुम्हारे खयालों से लबरेज़ रहती थी। वक़्त-बेवक़्त पास आने के बहाने ढूँढती क्योंकि मुझे तुम्हारे अंदर के प्यार के समंदर का अहसास हो चुका था। कितनी बेबाकी से जवाब दिया था तुमने..'हनी ये प्यार सुनामी होता है जो अपने पीछे बर्बादी का मंजर छोड़कर जाता है। मुझे मत ले जाओ प्यार की दुनिया में।' तुम्हारे इस जवाब पर मेरा मन मथ सा गया था। तुम्हें बाहों में भरकर माथा चूमा था। तुम्हारे इतना करीब आकर ये लगा था कि अब दूर जाना नामुमकिन है। तुम्हें ये यकीन दिलाने की भरसक कोशिश की कि मैं हमेशा तुम्हें अपने प्यार की छाँव में रखूँगी। कोई सुनामी तुम्हें छू भी नहीं सकती मेरे प्यार के सिवा। तुम्हारे अंदर वाला प्यार का मीठा दर्द बाहर आ चुका था। खो से गए थे तुम इन रंगीन गलियों में और मैं प्यार की आगोश में। भूल जाती थी हर कुछ तुमसे रूबरू होने के बाद...'हनी तुम्हें पता है दुनिया सबसे खूबसूरत कब लगती है?'

'तुम्हारी बाहों में आकर।'

'कल तुम्हें पनाह देने को मेरी आगोश न रहे तब?'

'तब हनी ही कहाँ रहेगी..वो तो अपने ईश की है।'

'मान लो हम फिर भी अलग हो जाएं तो क्या करोगी?'

'जान दे दूँगी अपनी..यही सुनना चाहते हो न तुम मगर मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली। मुझे पता है तुम्हें मुझसे ज़्यादा प्यार कोई नहीं कर सकता। मैं हमेशा तुम्हारे आस-पास रहूँगी छाया बनकर..पर आज अचानक ये ख़याल कैसे आया?'

'कुछ नहीं बस ऐसे ही।' मैंने बहुत कोशिश की जानने की पर तुम कुछ न बोले। मुझे ऐसा लगा जैसे कुछ होने वाला था। फिर कई दिनों तक मिलना तो दूर तुम्हारी कॉल तक नहीं आयी बस एक मैसेज के सिवा, 'हनी, अब मिलना पॉसिबल नहीं।' पता है तुम्हें क्या बीती मुझपर। लगा जैसे किसी ने चेतनाहीन कर दिया हो मेरा शरीर। मैं निःशब्द सी खुद में गुम हो गयी और तुम न जाने किस दुनिया में। कैसे खुद को सम्हाला तुम्हारी यादों के साथ। अपनी भावनाओं को मैंने घुटते देखा है जैसे समंदर किनारे रेत पर कोई मछली दम तोड़ देती है। 

फिर मुझे सच का पता चला। मैं बदहवास सी भागती हॉस्पिटल पहुँची जहाँ तुम्हारी माँ मौत से लड़ रही थी। ये मेरी बदकिस्मती थी या सच को इसी तरह से सामने आना था कि मेरी आँखों के सामने माँ के वो आखिरी शब्द निकले...बहू का ध्यान रखना। तुम्हारी पत्नी तुम्हें ढाँढस बंधा रही थी। मेरे कदम खुद-ब-खुद पीछे हट गए। कुछ भी नहीं बचा था मेरे पास, सांत्वना के दो शब्द भी नहीं। मैं हॉस्पिटल से बाहर आ गयी। ये तय नहीं कर पा रही थी कि मैं छली गयी या नियति ने मेरे साथ कोई नाइंसाफी की। इतना सब कुछ हो गया और तुमने मुझे सिर्फ दो बोल बोले..सॉरी। क्या इतना कमजोर था मेरा प्यार जो सच नहीं सुन पाता?

मैं सड़क के मंजिलविहीन रास्ते पर निकल पड़ी थी। अचानक सामने से आती हुई कार दिखी। इसके बाद क्या हुआ कुछ नहीं जानती। जब मैंने आँखे खोलीं खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया और इसके बाद सारा मंजर तुम्हारी आँखों के सामने था। अफसोस है कि तुम कुछ गलत समझ बैठे। आज मुझे उस इंसान के साथ देखकर हिकारत से मुँह फेर लिया। मैं उस इंसान को जानती तक न थी। फिर जब तुमने सारे रिश्ते-नाते ही खत्म कर दिए तो कहना-सुनना कैसा। अगर मैंने तुमसे प्यार किया था तो तुमने भी तो कुछ कमिटमेंट्स किए थे। क्या हक़ था मुझे हमसफ़र बनाकर बीच मंझधार में छोड़ देने का। कुछ वक्त साथ गुजारकर मीठी बातें करना ही तो मोहब्बत नहीं होता। प्यार कोई सीढ़ी नहीं होता ये तो वो ऊँचाई है जो खुद में ही मुक़म्मल है। इसके लिए कोई जिस्मानी रिश्ता होना ही तो जरूरी नहीं होता। तुम एक बार मुझसे सच बताते तो सही तुम्हें क्या लगता है मैं तुम्हारी मजबूरी नहीं समझती। मैंने प्यार किया है तुमसे और प्यार पानी पर खिंची कोई लकीर नहीं जो वक़्त के साथ मिट जाएगी। तुम महज मेरे शब्दों में नहीं मेरी आवाज हो। तुम्हारे साथ मैंने ज़िन्दगी के जो सपने बुने थे वो सब तुम्हें लौटा रही हूँ। डोंट ओरी मैं कभी तुमसे कोई हिसाब नहीं मांगूंगी, कभी कुछ जानने की कोशिश भी नहीं करूँगी। तुम जिस्म से, रूह से भले ही मुझे अलग कर दो पर मुझसे ये यादें चुराकर नहीं ले जा सकते। मैं तुम्हारी नहीं तो मैं किसी की भी नहीं। तमाम खुशियों से सजी अपनी मुख़्तसर सी प्यार की दुनिया बहुत खूबसूरत थी। शुक्रिया उन सभी लम्हों का जो तुमने मुझे दिए। श्वेत चांदनी में टंके हजारों सितारों की दुवाएँ बस तुम्हारे लिए। तुम्हें मेरे हिस्से की मुट्ठी भर खुशियां मुबारक़। हमेशा सम्हालकर रखना इन्हें। ज़िन्दगी के किसी भी मोड़ पर जरूरत के वक़्त मुझे आवाज़ देना मैं कयामत तक बस वहीं रहूँगी जहां तुमने मुझे छोड़ा। आज से हम एक-दूसरे के लिए ईशांत और हनोवर हैं। बस लक्ष्मणरेखा में तुम्हें रहना होगा क्योंकि मुझे पता है तुम बाहर निकलने की पहल कभी नहीं करोगे मेरी आखिरी सांस पर भी नहीं। मैं अपनी कसम हार जाऊँगी... तुम्हारी एक छोटी सी उफ़्फ़ भी मुझे बेचैन कर देगी, मैं जी नहीं पाऊँगी।

कोई शिकायत नहीं बस प्यार ही प्यार,

अल्लाह हाफ़िज

हनी

मेरी पहली पुस्तक

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