एक अजनबी की तरह

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सुनो न, आज कविता की भाषा में
मौन आंखों से बात करते हैं।
तुम मुझे सताते हो
मैं तुम्हें दुलारती हूँ रोज-रोज,
गीत मनुहार के छोड़ो,
एक अजनबी की तरह आज फिर
मुलाक़ात करते हैं।
किस हाल में हूँ मैं ये न पूछो मुझसे,
तुम्हारी भी मुझको कहाँ कुछ खबर है,
आओ तो पहली नज़र की तरह
मिलते हैं और जवां रात करते हैं।
मुझसे निगाहें मिलाकर के बोलो
हया के इशारे पलकों पे रखो,
होठों को फुरसत मिले दो घड़ी
कुछ इस तरह रात भर बात करते हैं।

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