मैं सब कहीं हूँ
प्रेम में, विरह में
दर्द में, साज में
सादगी में हूँ
परिहास में भी हूँ
मूक गर शब्दों से
तो आभास में हूँ
मैं मधुर हूँ
नीम की छड़ में
मैं कटु हूँ
शहद के शहर में,
अणु हूँ
रासायनिक समीकरण में
गति हूँ
चाल हूँ
समय हूँ
भौतिक के हर नियम में,
मुझसे ही आगे बढ़ा है
डार्विन का हर वाद
अपना सा लगे
प्रजातन्त्र और स्वराज
माल्थस का सिद्धांत हो
या रोटी का भूगोल
रामानुजम ने बताया
न समझो हर जीरो गोल
मैं शेषनाग पर टिकी,
मोक्ष के मुख पर
कयाधु के गर्भ से निकली,
जड़ हूँ
चेतन हूँ
अजरता
अमरता
का पोषण हूँ
मैं जीवन हूँ।
6 टिप्पणियां:
i discover myself in a zephyr. to what shall compare the incomparable?
i discover myself in a zephyr. to what shall i compare the incomparable?
why can't i see you? i know you're here.
I'm here 👍
i have had trouble with my eyes for some time. sometimes i think they're closed when they're open and sometimes the other. it's an open and shut case, as it were. be blessed. john
वाह!
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