आख़िरी से पहले की ख्वाहिशें

"मैं तुमसे बात नहीं कर पाऊँगा, हाँ ये जानता हूँ तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो और शायद यही वजह भी है"

"ठीक है तुम शब्दों में लिखते रहना, मैं आँखों से चूम लिया करुँगी, जीती रहूँगी अपने आप में तुम्हारी होकर"

"मुझे अफसोस है कि मैं कभी तुम्हारे सामने भी न आ पाऊँगा"

"मैं अपने आज़ाद ख़यालों में पा लिया करुँगी तुम्हारी झलक"

"कब तक बनाती रहोगी उम्मीद के मक़बरे?"

"तुम्हारे ख़यालों में तर साँसों के चलने तक"

"फिर?"

"फिर थोड़ी सी मुझे ज़मींदोज कर देना वहाँ, जहाँ चूमते हैं ये पाँव अलसुबह की ओस. महसूस लूँगी हर रोज तुम्हारी छुअन, थोड़ी सी मुझे जला देना उस पेड़ की लकड़ियों संग जिसे सींचा है तुम्हारे बचपन ने, गले लगाया है तुम्हारे यौवन ने, अपने आँसुओं से भिगोयी हैं जिसकी पत्तियाँ तुमने, मेरी हड्डियों से बनाना काला टीका… जो लगाया जाये प्यार भरी पेशानी पर. बाक़ी बची मुझ से बनाना एक नजरबट्टू..जहाँ भी रहो तुम मेरी आज़ाद रुह के साथ वहाँ रखना.
पूरी कर देना मेरी आख़िरी से पहले की ख्वाहिशें"

"----?----"

"मेरी आखिरी ख्वाहिश तो बस 'तुम' है"

3 टिप्‍पणियां:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…


पूरी हो जाएँ आपकी "आख़िरी से पहले की ख्वाहिशें"
उम्दा

Anita ने कहा…

वाह ! इसे कहते हैं राधा वाला प्यार

Onkar ने कहा…

वाह, उम्दा.

मेरी पहली पुस्तक

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