याद बहुत आते हो ना

 


अपनी आँखों में

नक्शा बाँधकर सोने लगी हूँ अब

सपनों में आ जाती हूँ

तुम्हारे पास


चले आने की आहट किये बिना ही

तुम्हारे सिरहाने बैठे बैठे

पूछ लेती हूँ, मे आई कम इन

और जब तुम कहते हो ना,

धत पगली और कितना अंदर आयेगी

तब माँ कमरे के बाहर तक आकर

लौट रही होती है...

नींद में बड़बड़ाने की बीमारी

ब्याह के बाद ही जायेगी बुद्धू की

मैं, मेरा बुद्धू, कहकर

अनंत प्रेम पाश में

समेट लेती हूँ तुम्हें

5 टिप्‍पणियां:

Prakash Sah ने कहा…

"...
अपनी आँखों में
नक्शा बाँधकर सोने लगी हूँ अब
..."

वाह! अद्वितीय पंक्ति।

प्रेम से लबरेज बेहद खूबसूरत रचना।

Abhilasha ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना

सुशील कुमार जोशी ने कहा…


सुन्दर

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर

Onkar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना

मेरी पहली पुस्तक

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