मैं तुम्हारी अर्धांगिनी


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अब तक
तुम्हारी परछाईं बनकर
जिया है हर लम्हा,
तुम्हारे पास मगर दूर रहकर
तय किया है हर सफर।
तुम्हारी तन्हाइयों से लिपटकर
मनाई है अपनी सुहागरात,
मैंने पहने हैं
तुम्हारे अहसासों के जेवर,
कहाँ है तुम्हारे नाम का सिंदूर,
मेरी बेनूर ज़िन्दगी
सोलह सिंगार मांगती है,
मुझे भी वो रात दो न,
नहीं बनाना है मुझे तुमको
अपने जीवन का
बिखरा हुआ पन्ना,
कहो न अब तुम्ही हो
मेरे सपनों के राजकुमार
और मैं तुम्हारी अर्धांगिनी।

Let me love..

Let me love
whole the night.
Let me love
till sun is bright.
Let me love
to feel the warm.
Let me love
to fall your arms.
Let me love
to dive in sense.
Let me love
to become insane.

Your Voice to me.


मैं

कभी-कभी लोग
मेरा मूल्यांकन
ऐसे करते हैं
जैसे मेरा प्रादुर्भाव
पुरातत्ववेत्ताओं के 
अथक प्रयास के 
फलस्वरूप हुआ है।

Me

I
never felt
myself
more than
a steppny
in your view
but assumed
as BMW
which
doesn't need
a steppny.

महंगे कर दिए तुमने अपने शब्द

आज
तुम्हें कोई पढ़ना चाहता है
लेकिन
तुमने कर दिए महंगे अपने शब्द।
बेरोजगार जीवन में
तुम्हारे शब्द ही तो सस्ते थे
किन्तु आज
महंगाई के आसमान को छूने वाले
टमाटर और प्याज़
जैसे जमीन हो गए
हम कभी निगल नहीं पाए
तुम्हारे पथरीले शब्द
बल्कि
ये तुम्हारे शब्द ही थे
जो हमारा मन खाते थे
किन्तु आज
तुम्हे स्वीकार नहीं हमारा मन
बहुत महंगे हो गए हो
तुम भी।

अलविदा

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ये आख़िरी शब्द हैं मेरे
क्योंकि अब मैं नहीं मिलूँगी कभी
किसी नुक्कड़, चौराहे,
रास्ते, गली, मोहल्ले, दुकान में,
देश-विदेश, निकास-प्रवेश, धरती-आकाश,
घर-बाहर, ज़िन्दगी-श्मशान में,
अपनों में, गैरों में, यादों के ठौरों में,
खुशी में, ग़मों में, दुआ में, वफ़ा में,
कफ़न में, लिबास में, तल्ख़ियों, ख़राश में,
सुबह के सफर में, रात की बसर में,
सोंधी मिट्टी की महक में, बादलों की गमक में,
गुलज़ार की ग़ज़ल में, किसी जिन्न के अमल में,
पाँव की पाजेब में, बेवफा के फरेब में,
मोबाइल की घण्टियों में भी नहीं,
न किसी सन्देश में, न दर्द के आवेश में,
...................................
मेरा होना एक हक़ीक़त था,
न होना उससे भी बड़ी।
मरती तो मैं रोज़-रोज़ थी
पर आज जियूंगी नहीं,
रूह मेरी तुमसे ही बावस्ता रहेगी,
बस जिस्म से अलग
हल्की हो जाएगी।
तुम्हारी किसी आहट पर
कोई हलचल नहीं होगी,
कहते हो न कि मैं तुम्हें जीने नहीं देती,
अब तुम जियोगे
और मैं तुममें जियूंगी।
सुन रहे हो न तुम!

मेरे एहसासों की कहानी






बहुत सी ऐसी बातें हैं जो अनकही रह जाती हैं उन्हें शब्द में ढालकर कविता पे पिरोकर लायी हूँ आपके लिए। उम्मीद है पसन्द आएंगी।
प्रतिक्रिया अवश्य करियेगा।

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php