ज़िन्दगी, तुम्हारे लिए!

बस इतनी सी ख्वाहिश थी मेरी
तुम सबकी खुशी में शामिल रहो
मग़र ए ज़िन्दगी!
तुम्हारी खुशी तो
मेरी मय्यत पर भी
मुकम्मल नहीं,
अब क्या करूँ इस रूह का
जो जनाज़े को तरसती है
सुबह कर दो मेरे ग़मों की
मेरी रूह को अफज़ा कर दो.

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php