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तुम शशि हो शरद के

 


व्रत हुआ कोजागिरी का

और देवों के प्रणय का हार

महारास की बेला अप्रतिम

मैं अपने मन के शशि द्वार

तुम शरद हो ऋतुओं में

तुम हो मन के मेघ मल्हार

चंद्रमा कह दूँ तुम्हें तो

और भी छाए निखार

तुम स्नेह की कण-कण सुधा हो

मद भरी वासन्ती बयार

पीत जब नाचा धरा पर

हुआ समय बन दर्शन तैयार

13 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२१-१०-२०२१) को
'गिलहरी का पुल'(चर्चा अंक-४२२४)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

anita _sudhir ने कहा…

बहुत खूब
देवो के प्रणय का हार

ज्योति-कलश ने कहा…

सुन्दर रचना

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
बहुत सुन्दर सृजन।

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार सुधा जी!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार ज्योति जी!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार सुशील जी!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार अनीता जी!

Roli Abhilasha ने कहा…

हृदयतल से आभार अनीता जी!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार आलोक जी!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार ओंकार जी!

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php